11 जून, 2011

यहाँ कुछ नहीं बदलता


जब देखे अनेक चित्र
ओर कई रँग उसके
जाने की इच्छा हुई
अनुभव बढ़ाना चाहा |

समझाया भी गया
वहाँ कुछ भी नहीं है
जैसा दिखता है
वैसा नहीं है |

पंक है अधिक
कुछ खास नहीं है
जो भी वहाँ जाता है
उसमें फंसता जाता है|

पर कुछ पौधे ऐसे हैं
जो वहाँ ही पनपते हैं
फलते फूलते हैं
हरे भरे रहते हैं |

राजनीति है ऐसा दलदल
जहां नोटों की है हरियाली
जो भी वहाँ जाता है
आकण्ठ डूबता जाता है |

सारी शिक्षा सारे उसूल भूल
सत्ता के मद में हो सराबोर
जिस ओर हवा बहती है
वह भी बहता जाता है |

उस में इतना रम जाता है
वह भूल जाता है
वह क्या था क्या हो गया है
अस्तित्व तक गुम हो गया है |

कभी तिनके सा
हवा में बहता है
फिर गिर कर उस दलदल में
डूबने लगता है |

तब कोई मदद नहीं करता
आगे आ हाथ नहीं थामता
है यह ऐसा दलदल
यहाँ कुछ भी नहीं बदलता |


आशा












15 टिप्‍पणियां:

  1. राजनीति है ऐसा दलदल
    जहां नोटों की है हरियाली
    जो भी वहाँ जाता है
    आकण्ठ डूबता जाता है |
    the bitter reality
    Nice read !!!!

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  2. सारी शिक्षा सारे उसूल भूल
    सत्ता के मद में हो सराबोर
    जिस ओर हवा बहती है
    वह भी बहता जाता है |
    सारगर्भित रचना , बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. राजनीति है ऐसा दलदल
    जहां नोटों की है हरियाली
    जो भी वहाँ जाता है
    आकण्ठ डूबता जाता है |

    सारी शिक्षा सारे उसूल भूल
    सत्ता के मद में हो सराबोर
    जिस ओर हवा बहती है
    वह भी बहता जाता है |

    We have to say, now we have do something as -
    जनता के दिल की आवाज हूँ मैं
    अब तक था दबा अब नहीं दबूंगा.
    जनता के ऊपर नित भ्रष्टाचार
    बहुत सहा, अब नहीं सहूंगा..

    करो बात यदि भ्रष्टाचार की.
    एक स्वर से फिर यही बात करो.
    लो मिट्टी हाथ और करो संकल्प
    मिटायेंगे इस देश से भ्रष्टाचार.

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  4. राजनीति है ऐसा दलदल
    जहां नोटों की है हरियाली
    जो भी वहाँ जाता है
    आकण्ठ डूबता जाता है |

    बहुत सार्थक और सटीक टिप्पणी आज के हालात पर..

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  5. राजनीति है ऐसा दलदल
    जहां नोटों की है हरियाली
    जो भी वहाँ जाता है
    आकण्ठ डूबता जाता है |

    आशा जी ,
    बेहद सटीक अवलोकन । राजनीति की यही स्थिति है। पंक ही पंक है । आकण्ठ डूबते सत्ताधारी।

    .

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  6. आज की राजनीति की नैतिकता पर सटीक वार करती बेहतरीन रचना ! वास्तव में यहाँ कीचड़ ही कीचड़ है ! जो एक बार इसमें घुस जाता है अपने सारे मूल्य और आदर्शों को भूल कर इसीके रंग में रंग जाता है ! बहुत बढ़िया प्रस्तुति ! बधाई !

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  7. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी (कोई पुरानी या नयी ) प्रस्तुति मंगलवार 14 - 06 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    साप्ताहिक काव्य मंच- ५० ..चर्चामंच

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  8. भ्रष्टाचार की यह दलदल प्रसिद्ध व्याघ्र कथा का स्मरण कराती है। सोने का कंगन देख संतुलन खोते लोग।

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  9. लीगल सैल से मिले वकील की मैंने अपनी शिकायत उच्चस्तर के अधिकारीयों के पास भेज तो दी हैं. अब बस देखना हैं कि-वो खुद कितने बड़े ईमानदार है और अब मेरी शिकायत उनकी ईमानदारी पर ही एक प्रश्नचिन्ह है

    मैंने दिल्ली पुलिस के कमिश्नर श्री बी.के. गुप्ता जी को एक पत्र कल ही लिखकर भेजा है कि-दोषी को सजा हो और निर्दोष शोषित न हो. दिल्ली पुलिस विभाग में फैली अव्यवस्था मैं सुधार करें

    कदम-कदम पर भ्रष्टाचार ने अब मेरी जीने की इच्छा खत्म कर दी है.. माननीय राष्ट्रपति जी मुझे इच्छा मृत्यु प्रदान करके कृतार्थ करें मैंने जो भी कदम उठाया है. वो सब मज़बूरी मैं लिया गया निर्णय है. हो सकता कुछ लोगों को यह पसंद न आये लेकिन जिस पर बीत रही होती हैं उसको ही पता होता है कि किस पीड़ा से गुजर रहा है.

    मेरी पत्नी और सुसराल वालों ने महिलाओं के हितों के लिए बनाये कानूनों का दुरपयोग करते हुए मेरे ऊपर फर्जी केस दर्ज करवा दिए..मैंने पत्नी की जो मानसिक यातनाएं भुगती हैं थोड़ी बहुत पूंजी अपने कार्यों के माध्यम जमा की थी.सभी कार्य बंद होने के, बिमारियों की दवाइयों में और केसों की भागदौड़ में खर्च होने के कारण आज स्थिति यह है कि-पत्रकार हूँ इसलिए भीख भी नहीं मांग सकता हूँ और अपना ज़मीर व ईमान बेच नहीं सकता हूँ.

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  10. वाकई पंक / कीचड़ कुछ ज्यादा ही है आज के दौर में

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  11. बहुत सही लिखा है आपने.

    सादर

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