17 जून, 2011

अब वह कॉलेज कहाँ


कॉलेज की वे यादें

आज भी भूल नहीं पाती

मन में ऐसी बसी हैं

अक्सर याद आती हैं |

प्राध्यापक थे विद्वान

अपने विषयों के मर्मग्य

उच्च स्तरीय अध्यापन निपुण

और अनुकरणीय |

विद्यार्थी कम होते थे

स्वानुशासित रहते थे

कई गतिविधियां

खेल कूद और सांस्कृतिक भी

सौहार्द्र पूर्ण होती थीं |

उनमें भाग लेने की ललक

अजीब उत्साह भारती थी

जब जीत सुनिश्चित होती थी

या पुरूस्कार मिलता था

तालियों से स्वागत

गौरान्वित करता था |

थी एक मसखरों कई टोली

था काम गेट पर खड़े रहना

आते जाते लोगों को

बिना बात छेड़ते रहना

फिर भी बंधे थे मर्यादा से |

रिक्त काल खण्डों में

बागीचा था उन की बैठक

चुटकुले और शेर शायरी

या हास परिहास में

व्यस्त रहते थे|

सब के नाम रखे गए थे

जब भी कोई चर्चा होती थी

होता था प्रयोग उनका

हँसने का सामान जुट जाता था |

हंसी मजाक और चुहलबाजी

तक सब थे सीमित

लड़के और लडकियां आपस में

यदा कडा ही मिलते थे |

दत्त चित्त हो पढते थे

प्रोफेसर की नजर बचा

कक्षा में कभी लिख कर

बातें भी करते थे |

जब भी अवसर मिलता था

शरारतों का पिटारा खुलता था

हँसते थे हंसाते थे

पर दुखी किसी को ना करते थे |

अब वैसा समय कहाँ

ना ही वैसे अध्यापक हैं

और नहीं विद्यार्थी पहले से

आज तो कॉलेज लगते हैं

राजनीति के अखाड़े से |

आशा

16 टिप्‍पणियां:

  1. सच कहा है अब ऐसे कॉलेज कहाँ हैं..पुरानी यादें ताज़ा कर दीं..बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

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  2. sahi abhivyakti.aaj adhyapkon ke rajneeti ke moh ne sari shiksha vyavastha ko hi chaupat kar diya hai.aur vidhyarthiyon ko uchhrinkhal.

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  3. कॉलेज के दिन याद करा दिए ..अच्छी प्रस्तुति

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  4. kyaa bat hai hme bhi apne kolej ke lmhon ki aapni is rchna ne yaad dila dali hai bhtrin rchna ke liyen bdhai svikaren ..akhtr khan akela kota rajsthan

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  5. अब वैसा समय कहाँ

    ना ही वैसे अध्यापक हैं

    और नहीं विद्यार्थी पहले से

    आज तो कॉलेज लगते हैं

    राजनीति के अखाड़े से |
    bilkul sach

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  6. आपकी यह उत्कृष्ट प्रवि्ष्टी कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी है!

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  7. सुन्दर पंक्तिया , बधाई

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  8. आपकी इस खूबसूरत रचना ने तो कॉलेज की यादें ताज़ा कर दीं | बहुत ही खूबसूरत |

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  9. प्रोफेसर की नजर बचा

    कक्षा में कभी लिख कर

    बातें भी करते थे |

    जब भी अवसर मिलता था

    शरारतों का पिटारा खुलता था

    हँसते थे हंसाते थे

    पर दुखी किसी को ना करते थे |




    puraani smritiyon se bhari sunder rachna .

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  10. सच में अब स्कूल कॉलेजों में वैसा स्वस्थ माहौल रह ही कहाँ गया है ! पहले गुरु शिष्य का रिश्ता कितना उदात्त और गरिमापूर्ण होता था ! अब तो सभी व्यक्तिवादी हो गये हैं ! ना बच्चे गुरु से डरते हैं ना गुरु को बच्चों की प्रगति से कोई वास्ता है ! हर जगह कृत्रिमता का साम्राज्य है ! बहुत अच्छी रचना ! बधाई !

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  11. आशा जी, आप ने तो कॉलेज के दिन याद करा दिए ..आभार..

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  12. aasha ji ...aapki kavita ko padh kar apne collage ke din yaad aa gaye...bahut khub....aabhar

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  13. हकीकत से रूबरू करवाती रचना

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  14. bahut sunder rachna :)
    "प्राध्यापक थे विद्वान "
    kaash ye panktiya aaz bhi sach hoti :)
    ______________________________________________
    मैं , मेरा बचपन और मेरी माँ || (^_^) ||

    राजनेता - एक परिभाषा अंतस से (^_^)

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  15. पुरानी यादें ताज़ा कर दीं..बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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