नार कटवाती दाई ,जन्म होता सुखदाई
मनुष्य जीवन पाया ,यूं व्यर्थ जाए ना |
वह सुन्दरी सुमुखी ,सज सवर चल दी
रीत यहाँ की जाने ना ,चाल सीधी चले ना |
उसकी नागिन जैसी ,बल खाती लंबी वेणी
मुख में बीड़ा दबाना ,बिना हंसे चले ना |
मंद मंद मुस्काना ,ध्यान कहीं भटकाना
गुमराह होती जाना ,मार्ग है अनजाना |
मन में होती अशांति ,तूती बजे ना फिर भी
प्रभु के भजन गाना ,नार बिन चले ना|
आशा
मन में होती अशांति ,तूती बजे ना फिर भी
जवाब देंहटाएंप्रभु के भजन गाना ,नार बिन चले ना|
बेहतरीन !
सादर
Thanks for the comment
हटाएंबहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंसुन्दर मनोभाव की कविता ,बधाई
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंमन में होती अशांति ,तूती बजे ना फिर भी
जवाब देंहटाएंप्रभु के भजन गाना ,नार बिन चले ना|
सुन्दर रहस्मय प्रस्तुति.आनंद आ गया.
रहस्य का जरा पर्दा उठे,तो आनंद का वेग और बढे
Thanks for the comment
हटाएंआदरणीय आशा माँ
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
सुन्दर रहस्मय प्रस्तुति....
कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई
Thanks for the comment
हटाएंकरीब १५ दिनों से अस्वस्थता के कारण ब्लॉगजगत से दूर हूँ
जवाब देंहटाएंआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
Thanks for the comment
हटाएंसोंचने को मजबूर करती रचना ...बधाई आपको !
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रयास है ! अच्छा लिखा है ! पढ़ कर आनंद आया ! बधाई !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंबहुत सुन्दर गीत... वाकई नारी जननी है श्रृष्टि की
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंवाह!! आनन्द आ गया...
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंI don't even know how I ended up here, but I thought this post was great. I don't know who you are but certainly you're going to a famous blogger if you are not already ;) Cheers!
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