ऊंचे पर्वतों से निकली
चंचल चपल धवल धाराएं
मार्ग अपना प्रशस्त किया
आगे बढ़ीं सरिता बनीं |
अलग अलग मार्गों से आईं
मंदाकिनी विलीन हो गयी
अलखनंदा में मिल गयी
नदिया में बिस्तार आया
वह और रमणीय हो गयी |
आसपास हरियाली थी
तेज बहती जल धारा थी
कल कल ध्वनि बहते जल की
खींच रही थी अपनी ओर |
घंटों बैठे उसे निहारते
नयनों में वे दृश्य समेटे
एक चित्र कार बैठा पत्थर पर
उकेरता उन्हें कैनवास पर |
जब दिन ढला शाम हुई
दी दस्तक चाँद ने रात में
चंचल किरणें खेलने लगी
जल धारा के साथ में |
खेलता चन्द्रमा लुका छिपी
पेड़ों से छन कर आती
घरोंदों में होती रौशनी से
था दृश्य ही ऐसा
कि मन की झोली में भर लिया |
अब जब भी मन उचटता है
कहीं दूर जाना चाहता है
आखें बंद करते ही
वे दृश्य उभरने लगते हैं
मन सुकून से भर जाता है |
सच कहा था चित्रकार नें
जहां अपार शान्ति होती है
मानसिक थकान नहीं होती
कुछ नया सर्जन होता है |
आशा
चंचल चपल धवल धाराएं
मार्ग अपना प्रशस्त किया
आगे बढ़ीं सरिता बनीं |
अलग अलग मार्गों से आईं
मंदाकिनी विलीन हो गयी
अलखनंदा में मिल गयी
नदिया में बिस्तार आया
वह और रमणीय हो गयी |
आसपास हरियाली थी
तेज बहती जल धारा थी
कल कल ध्वनि बहते जल की
खींच रही थी अपनी ओर |
घंटों बैठे उसे निहारते
नयनों में वे दृश्य समेटे
एक चित्र कार बैठा पत्थर पर
उकेरता उन्हें कैनवास पर |
जब दिन ढला शाम हुई
दी दस्तक चाँद ने रात में
चंचल किरणें खेलने लगी
जल धारा के साथ में |
खेलता चन्द्रमा लुका छिपी
पेड़ों से छन कर आती
घरोंदों में होती रौशनी से
था दृश्य ही ऐसा
कि मन की झोली में भर लिया |
अब जब भी मन उचटता है
कहीं दूर जाना चाहता है
आखें बंद करते ही
वे दृश्य उभरने लगते हैं
मन सुकून से भर जाता है |
सच कहा था चित्रकार नें
जहां अपार शान्ति होती है
मानसिक थकान नहीं होती
कुछ नया सर्जन होता है |
आशा
प्रकृति के असीम सौन्दर्य को उकेरती रचना ....नदी की बहती स्वच्छ जलधारा सी प्रवाहमान हो रही है |
जवाब देंहटाएंमन को अपार शांति तो प्रकृति की ममतामयी गोद में ही मिल पाती है.....
आपकी मनोहारी रचना ने केदारनाथ बद्रीनाथ के सभी दृश्यों को आँखों के सामने सजीव कर दिया ! गंगा की अविरल धारा का मधुर कल कल स्वर कानों में गूँज गया ! इतनी सुन्दर रचना और ४०० रचनाओं के कीर्तिमान को बना लेने की उपलब्धि के लिए मेरी ढेर सारी हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनाएं स्वीकार करें !
जवाब देंहटाएंनिसर्ग का संसर्ग होता ही ऐसा है
जवाब देंहटाएं400वीं रचना के लिये बधाई,
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
bahut sunder vivran prakrity ka......400 rachna puri hone par badhayee.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना! शांति के बारे में बात बिल्कुल सही है। 400वीं रचना के लिये बधाई!
जवाब देंहटाएंप्राकृति के सोंदर्य को शब्दों में उतारती ४००वी कविता की बधाई ...
जवाब देंहटाएंHurrah! In the end I got a weblog from where I
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