02 जून, 2011
दूर कहीं चले जाते
पहले उनका इन्तजार
बड़ी शिद्दत से किया करते थे
हर वक्त एक उम्मीद लिए
नजरें बिछाए रहते थे |
इन्तजार उसका क्यूँ करें
जिसने हमें भुला दिया
जब उसे ही हमारी फिक्र नहीं
गैरों से गिला क्यूँ करें |
हाले दिल बयां क्यूँ करें
परेशानी का सबब क्यूँ बनें
जब रुलाने में ही उसे मजा आए
उसकी खुशी में इज़ाफा क्यूँ करें |
गर अल्लाह से कुछ मांगते
जो भी पाते खैरात में देते जाते
दवा तो लगती नहीं
तब सदका भी उतारते
दुआ से ही काम चला लेते
वह भी अगर नहीं मिलाती
जिंदगी से पनाह मांग लेते |
वह भी अगर भुला देते
तब दूर कहीं चले जाते
उससे रहते दूर बहुत
दामन भी कभी ना थामते |
आशा |
आशा
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गहन एहसासों की सुन्दर अभिव्यक्ति ....
जवाब देंहटाएंविरह वेदना द्रष्टव्य.....
दर्द बयां करती हुई रचना ...बहुत सुंदर है ...!!
जवाब देंहटाएंआत्मसम्मान और आत्म गौरव की भावना से परिपूर्ण एक बहुत ही सशक्त रचना ! अति सुन्दर ! मेरी बधाई स्वीकार करें !
जवाब देंहटाएंदर्द का सुन्दर अहसास , सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंदिल की वेदना व्यक्त करती सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंदुआ से ही काम चला लेते so poignant !!
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