14 जुलाई, 2011

धीरज छूटा जाए




रिमझिम वर्षा की फुहार
अंखियों से बहती अश्रुधार
देखती विरहणी राह
प्रिय के आगमन की |
वे नहीं आए 
नदी नाले पूर आए
कैसे मन सम्हल पाए
बार बार बहका जाए |
बादलों का गर्जन
करता विचलित उसे
दामिनी दमके
चुनरी हवा में उड़ी जाए |
गहन उदासी छाए
धीरज छूटा जाए
पर ना हुई आहट
प्रीतम के आगमन की |
द्वारे पर टकटकी लगाए
वह सोचती शायद
मन मीत आ जाए
इन्तजार व्यर्थ ना जाए |
आशा

19 टिप्‍पणियां:

  1. Man meet ka intezaar...
    karti aankhein hazaar
    barsata hai man ban kar sawan....
    tarasta hai man paane ko fuhaar...

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  2. विरहणी के विरह को शब्दों में ढाल दिया है ... सुन्दर अभिव्यक्ति

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  3. विरह व्यथा के वेग और बारिश के वेग का बहुत सुन्दर चित्रण किया है ! मन को छूती भावभीनी रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  4. kanhi neh barsaata saavan kanhi ashru bahata saavan.virah ka achcha chitr banaya hai.Asha ji.

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  5. बारिश...... विरह
    दोनों का सुंदर प्रस्‍तुतिकरण।
    शुभकामनाएं आपको......

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  6. धीरज छूटा जाए

    पर ना हुई आहट

    प्रीतम के आगमन की |

    द्वारे पर टकटकी लगाए

    वह सोचती शायद

    मन मीत आ जाए

    इन्तजार व्यर्थ ना जाए.....

    आदरणीय ,आशा जी सप्रेम अभिवादन ...
    बहुत सुन्दर ....प्रसंसनीय प्रस्तुति ! हार्दिक बधाई

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  7. बेहद मनमोहक लगी विरह की भावना से ओत-प्रोत.... सही में यह इंतज़ार कभी व्यर्थ न जाए...

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