थी नादान बहुत अनजान
जानती न थी क्या था उसमे
सादगी ऐसी कि नज़र न हटे
लगे श्रृंगार भी फीका उसके सामने |
थी कृत्रिमता से दूर बहुत
कशिश ऐसी कि आइना भी
उसे देख शर्मा जाए
कहीं वह तड़क ना जाए |
दिल के झरोखे से चुपके से निहारा उसे
उसकी हर झलक हर अदा
कुछ ऐसी बसी मन में
बिना देखे चैन ना आए |
एक दिन सामने पड़ गयी
बिना कुछ कहे ओझिल भी हो गयी
पर वे दो बूँद अश्क
जो नयनों से झरे
मुझे बेकल कर गए |
आज भी रिक्त क्षणों में
उसकी सादगी याद आती है
मन उस तक जाना चाहता है
उस सादगी में
श्रृंगार ढूंढना चाहता है |
आशा
जानती न थी क्या था उसमे
सादगी ऐसी कि नज़र न हटे
लगे श्रृंगार भी फीका उसके सामने |
थी कृत्रिमता से दूर बहुत
कशिश ऐसी कि आइना भी
उसे देख शर्मा जाए
कहीं वह तड़क ना जाए |
दिल के झरोखे से चुपके से निहारा उसे
उसकी हर झलक हर अदा
कुछ ऐसी बसी मन में
बिना देखे चैन ना आए |
एक दिन सामने पड़ गयी
बिना कुछ कहे ओझिल भी हो गयी
पर वे दो बूँद अश्क
जो नयनों से झरे
मुझे बेकल कर गए |
आज भी रिक्त क्षणों में
उसकी सादगी याद आती है
मन उस तक जाना चाहता है
उस सादगी में
श्रृंगार ढूंढना चाहता है |
आशा
कभी कभी किसी की छवि मन मस्तिष्क पर इस तरह से अधिकार कर लेती है कि हटाये नहीं हटती ! मोहक एवं सुन्दर प्रस्तुति ! शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ,,
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया।
जवाब देंहटाएंसादर
कविता चित्र का साथ पा कर और भी जीवंत हो उठी है दीदी
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंखुबसूरत प्रस्तुती....
जवाब देंहटाएंखूबसूरत कविता... नए भाव को अभिव्यक्ति मिल रही है...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंसच है कभी कभी कोई छवि मन में बसी रहती है .. बहुत लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंदिल के झरोखे से चुपके से निहारा उसे
जवाब देंहटाएंउसकी हर झलक हर अदा
कुछ ऐसी बसी मन में
बिना देखे चौन ना आए।
प्रेम की अनोखी अभिव्यक्ति।
आदरणीय आशा माँ
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
सुन्दर और भावपूर्ण कविता के लिए हार्दिक बधाई।