15 सितंबर, 2011

वह दृष्टि


वे आँखें क्या जो झुक जायें
मन में है क्या, न बता पायें
पर मनोभाव पढ़ने के लिए
होती आवश्यक नज़र पारखी |
भावों की अभिव्यक्ति के लिये
होती है कलम आवश्यक
वह कलम क्या जो रूक जाये
भावों को राह न दे पाये |
मन में उठते भावों को यदि
लेखनी का सानिध्य मिले
सशक्त लेखनी से जब
शब्दों को विस्तार मिले
वह दृष्टि क्या, जो न पढ़ पाये
उनका अर्थ न समझ पाये |

आशा



12 टिप्‍पणियां:

  1. वह दृष्टि क्या, जो न पढ़ पाये
    उनका अर्थ न समझ पाये |बहुत ही सुन्दर....

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  2. Asha ji

    sundar rachna ke liye badhai sweekaren.
    मेरी १०० वीं पोस्ट , पर आप सादर आमंत्रित हैं

    **************

    ब्लॉग पर यह मेरी १००वीं प्रविष्टि है / अच्छा या बुरा , पहला शतक ! आपकी टिप्पणियों ने मेरा लगातार मार्गदर्शन तथा उत्साहवर्धन किया है /अपनी अब तक की " काव्य यात्रा " पर आपसे बेबाक प्रतिक्रिया की अपेक्षा करता हूँ / यदि मेरे प्रयास में कोई त्रुटियाँ हैं,तो उनसे भी अवश्य अवगत कराएं , आपका हर फैसला शिरोधार्य होगा . साभार - एस . एन . शुक्ल

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  3. इस कविता में आपकी वैचारिक त्वरा की मौलिकता नई दिशा में सोचने को विवश करती है।

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  4. बहुत सुन्दर एवं अर्थपूर्ण रचना ! सकारात्मक दिशा में सोचने के लिये प्रेरित करने में सक्षम है ! बधाई !

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  5. आदरणीय आशा जी,
    बेहद खूबसूरत,अर्थपूर्ण रचना बहुत ही अच्छा लिखा है.....

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  6. आदरणीय आशा जी आपकी कविता ने ऐसा रंगा हमको की हम इसे कई बार पढ़ के भी तृप्त नहीं हुए ..बहुत भावपूर्ण रचना ...

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