कई परतों में दबी आग
अनजाने में चिनगारी बनी
जाने कब शोले भड़के
सब जला कर राख कर गए |
फिर छोटी छोटी बातें
बदल गयी अफवाहों में
जैसे ही विस्तार पाया
वैमनस्य ने सिर उठाया |
दूरियां बढ़ने लगीं
भडकी नफ़रत की ज्वाला
यहाँ वहां इसी अलगाव का
विकृत रूप नज़र आया |
दी थी जिसने हवा
थी ताकत धन की वहाँ
वह पहले भी अप्रभावित था
बाद में बचा रहा |
गाज गिरी आम आदमी पर
वह अपने को न बचा सका
उस आग में झुलस गया
भव सागर ही छोड़ चला |
आशा
अनजाने में चिनगारी बनी
जाने कब शोले भड़के
सब जला कर राख कर गए |
फिर छोटी छोटी बातें
बदल गयी अफवाहों में
जैसे ही विस्तार पाया
वैमनस्य ने सिर उठाया |
दूरियां बढ़ने लगीं
भडकी नफ़रत की ज्वाला
यहाँ वहां इसी अलगाव का
विकृत रूप नज़र आया |
दी थी जिसने हवा
थी ताकत धन की वहाँ
वह पहले भी अप्रभावित था
बाद में बचा रहा |
गाज गिरी आम आदमी पर
वह अपने को न बचा सका
उस आग में झुलस गया
भव सागर ही छोड़ चला |
आशा
आज की गंदी राजनीति की बिलकुल सही तस्वीर खींची है आपने रचना में ! दुःख यही है कि जनता भुलावे में आ जाती है और नेताओं की चालें ना समझ कर अपना नुकसान खुद ही कर बैठती है ! एक सार्थक रचना ! बधाई !
जवाब देंहटाएंआज कल के हालात पर सार्थक अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंवैमनस्य ने सिर उठाया |
जवाब देंहटाएंदूरियां बढ़ने लगीं
भडकी नफ़रत की ज्वाला
यहाँ वहां इसी अलगाव का
विकृत रूप नज़र आया |
यह एक कड़वा सच है...
मन को उद्वेलित करने वाली बेहतरीन रचना....
बहुत सुंदर रचना..
जवाब देंहटाएंsochne ko bibash karti shandar rachna..badhayee aaur sadar pranam ke sath
जवाब देंहटाएंसार्थक अभिवयक्ति....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... आग सब कुछ जला देती है ...
जवाब देंहटाएंगहन भावो को समेटती खूबसूरत और संवेदनशील रचना|
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्ट ...सही लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंbehtreen post...
जवाब देंहटाएंबधाई! बहुत प्रभावशाली रचना आज की वीभत्स राजनीति को आइना दिखाती हुई !
जवाब देंहटाएंआज के हालात का बहुत सटीक चित्रण...
जवाब देंहटाएंhttp://premchand-sahitya.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंयदि आप को प्रेमचन्द की कहानियाँ पसन्द हैं तो यह ब्लॉग आप के ही लिये है |
यदि यह प्रयास अच्छा लगे तो कृपया फालोअर बनकर उत्साहवर्धन करें तथा अपनी बहुमूल्य राय से अवगत करायें |
वह पहले भी अप्रभावित था
जवाब देंहटाएंबाद में भी बचा रहा |
एक दम सही बात
मर्मस्पर्शी कविता।
जवाब देंहटाएंगाज गिरी आम आदमी पर
जवाब देंहटाएंवह अपने को न बचा सका
उस आग में झुलस कर
भव सागर ही छोड़ चला |
-बहुत बढ़िया....