है प्रेम क्या उसका अर्थ क्या
वह हृदय की है अभिव्यक्ति
या शब्दों का बुना जाल
या मन में उठा एक भूचाल |
होती आवश्यक संवेदना
आदर्श विचार और भावुकता
किसी से प्रेम के लिए
कैसे भूलें त्याग और करुना
है यह अधूरा जिन के बिना |
कुछ पाना कुछ दे देना
फिर उसी में खोए रहना
क्या यह प्यार नहीं
लगता है यह भी अपूर्ण सा
कब आए किस रूप में आए
है कठिन जान पाना |
जिसने इसे मन में सजाया
इसी में आक्रान्त डूबा
मन में छुपा यही भाव
नयनों से परिलक्षित हुआ |
रिश्तों की गहराई में
दाम्पत्य की गर्माहट में
यदि सात्विक भाव न हो
तब
सात फेरे सात वचन
साथ जीने मरने की कसम
लगने लगते सतही
या मात्र सामाजिक बंधन |
जिसके हो गए उसी में खो गए
रंग में उसी के रंगते गए
क्या यह प्यार नहीं ?
यह है बहुआयामी
और अनंत
सीमा जिसकी
यह तो है सुगन्धित बयार सा
जिसे बांधना सरल नहीं |
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 28-12-2011 को चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंbahut badhia likha hai ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर एवं सार्थक रचना ! मनोभावों की बहुत सशक्त अभिव्यक्ति है !
जवाब देंहटाएंजीवन का सार पढ़ने को मिला आपके लिखे शब्दों में ...आभार
जवाब देंहटाएंसुगन्धित बयार में मन लहरा उठा .
जवाब देंहटाएंमन के भावो को शब्दों में उतर दिया आपने.... बहुत खुबसूरत.....
जवाब देंहटाएंpyar ko bandhana namumkin hai jitna isme bandhna utna hi aasan.
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर..
जवाब देंहटाएंkalamdaan.blogspot.com
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 29 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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