11 फ़रवरी, 2012

कह जाती कुछ और कहानी

निराला संसार कल्पना का
असीमित भण्डार उसका
पर घिरा बादलों से
कुछ स्पष्ट नहीं होता |
जो दिखाई दे  वह होता नहीं
जो होता वह दीखता नहीं
बादलों की ओट से
हल्की सी झलक दिखा जाता
सदा अपूर्ण ही रहता |
नित्य नया संसार बनता
कभी सिमटता कभी बिखरता
उस पर रह न पाता अंकुश
बंधन में पहले भी न था
आज भी है   दूर उससे
कल क्या हो पता नहीं |
फिर भी यही सोच रहता
अंत होगा क्या इसका
है आस तभी तक
जब तक उल्टी गिनती शुरू न हुई
बाद में क्या हश्र हो
लौट कर किसीने बताया नहीं
पर है एक विशिष्ट पहलू
रंगीनी इसकी  दे जाती सुकून
कालिमा जब दिखती
छीन ले जाती खुशी |
इसकी अपनी दुनिया में
 जब छा जाती गहन उदासी
कह जाती कुछ और कहानी |
आशा




9 टिप्‍पणियां:

  1. कल्पना का संसार होता ही इतना निराला है ! हर वक्त हमारे साथ आँख मिचौली खेलता है ! कभी खुशी देता है, कभी आशा जगाता है तो कभी हताशा के गर्त में डुबो देता है ! बहुत सुन्दर रचना ! बधाई !

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    घूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच
    लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर की जाएगी!
    सूचनार्थ!

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  3. गहन भाव.. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

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  4. बड़ा ही निराला होता है कल्पना का संसार, जहाँ कोई अंकुश कोई पाबन्दी नहीं खुले असीम आकाश की तरह ... सुन्दर प्रस्तुति... सादर

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  5. जो दिखाई दे वह होता नहीं
    जो होता वह दीखता नहीं

    कविता यथार्थ से आवेष्टित है।

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  6. यथार्थ का परिचय करवाती रचना

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