निराला संसार कल्पना
का
असीमित भण्डार उसका
पर घिरा बादलों से
कुछ स्पष्ट नहीं
होता |
जो दिखाई दे वह होता नहीं
जो होता वह दीखता
नहीं
बादलों की ओट से
हल्की सी झलक दिखा
जाता
सदा अपूर्ण ही रहता
|
नित्य नया संसार
बनता
कभी सिमटता कभी
बिखरता
उस पर रह न पाता
अंकुश
बंधन में पहले भी न था
बंधन में पहले भी न था
आज भी है दूर उससे
कल क्या हो पता नहीं
|
फिर भी यही सोच रहता
अंत होगा क्या इसका
है आस तभी तक
जब तक उल्टी गिनती
शुरू न हुई
बाद में क्या हश्र
हो
लौट कर किसीने बताया
नहीं
पर है एक विशिष्ट
पहलू
रंगीनी इसकी दे जाती सुकून
कालिमा जब दिखती
छीन ले जाती खुशी |
इसकी अपनी दुनिया
में
जब छा जाती गहन उदासी
कह जाती कुछ और
कहानी |
आशा
कल्पना का संसार होता ही इतना निराला है ! हर वक्त हमारे साथ आँख मिचौली खेलता है ! कभी खुशी देता है, कभी आशा जगाता है तो कभी हताशा के गर्त में डुबो देता है ! बहुत सुन्दर रचना ! बधाई !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंघूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच ।
लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
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आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर की जाएगी!
सूचनार्थ!
गहन अभिवयक्ति..........
जवाब देंहटाएंbehtarin gahan chintan
जवाब देंहटाएंगहन भाव.. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंबड़ा ही निराला होता है कल्पना का संसार, जहाँ कोई अंकुश कोई पाबन्दी नहीं खुले असीम आकाश की तरह ... सुन्दर प्रस्तुति... सादर
जवाब देंहटाएंसचमुच....!!
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना...
सादर.
जो दिखाई दे वह होता नहीं
जवाब देंहटाएंजो होता वह दीखता नहीं
कविता यथार्थ से आवेष्टित है।
यथार्थ का परिचय करवाती रचना
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