13 फ़रवरी, 2012

अब अनजान नहीं

 खिली सुबह की धुप सी
बाली उम्र की रूपसी
डूबी प्यार में ऐसी
वह चंचला झुकती गयी
फूलों से लदी डाली सी
दुनिया से बेखबर
लिपटी आगोश में
जाने कब डाली टूटी
धराशायी   हुई
जब चर्चे आम हुए 
गलती का अहसास हुआ
पश्च्याताप में डूबी
शर्म से सिमटी छुईमुई सी
जब समय पा  दुःख भूली
 आगे बढ़ कर किसी ने
दिया सहारा हौले से
लाल गुलाब का फूल दे
मनोभाव पढ़ना चाहे  
पहले सहमी सकुचाई
फिर धीमें से मुस्काई
हाथ थाम बढ़ाए कदम
एक नई राह पर
  अजनवी राह चुनी 
 गहन आत्मविश्वास से
 वह अब अनजान नहीं 
जीवन की सच्चाई से
भरम उसका टूट चुका है 
स्वप्नों की दुनिया से |
आशा 



14 टिप्‍पणियां:

  1. वह अब अनजान नहीं
    जीवन की सच्चाई से
    भरम उसका टूट चुका है
    स्वप्नों की दुनिया से |

    ...जब जागो तब सबेरा...बहुत सार्थक और सुंदर अभिव्यक्ति..

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  2. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार !
    ..................... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।

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  3. सुन्दर अभिव्यक्ति,भावपूर्ण.
    आभार

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  4. बहुत ही प्यारी और भावो को संजोये रचना......

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  5. //वह अब अनजान नहीं
    जीवन की सच्चाई से
    भरम उसका टूट चुका है
    स्वप्नों की दुनिया से

    valentine's day par chetaavni si deti panktiyaan :p
    jokes apart... bahut sundar rachna hai:)

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  6. कच्ची उम्र की मासूम भूलों के दंश जीवन भर साथ रहते हैं ! परिपक्वता आने के साथ साथ समझदारी भी आ जाती है पर पहले प्यार की वह अनछुई कोमलता और पवित्रता तिरोहित हो जाती है ! बहुत सुंदर रचना ! बधाई !

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  7. aaderneeya asha jee...prem diwas ke mauke par likhi shandaar rachna ..man ko choo leti hai..sadar badhayee aaur amantran ke sath

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  8. जीवन के सच का आईना दिखाती हुई सी कविता ...वाह बहुत खूब

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  9. बहुत ही सुन्दर उम्दा अभिव्यक्ति...

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  10. ▬● पुष्प के सहारे बहुत खूबसूरती से लिखा है आपने... शुभकामनायें...

    दोस्त अगर समय मिले तो मेरी पोस्ट पर भ्रमन्तु हो जाइयेगा...

    Meri Lekhani, Mere Vichar..
    http://jogendrasingh.blogspot.in/2012/02/blog-post_3902.html
    .

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  11. एक फूल के बहाने से आपने जीवन की सत्य-कथा वर्णित कर दी ऍ
    सुन्दर !

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