22 फ़रवरी, 2012

ऋतु फागुन की


आई मदमाती ऋतु
फागुन की
चली फागुनी बयार
वृक्षों ने किया श्रृंगार
हरे पीले वसन पहन
झूमते बयार संग
थाप पर चांग की
थिरकते कदम
फाग की मधुर धुन
कानों में घुलती जाए
पिचकारी में रंग भर
लिए साथ अबीर  गुलाल
रंग खेलते बालवृंद
उत्साह और खुशी
छलक छलक जाए
प्रियतम के रंग में डूबी
भीगी चूनर गौरी की
गोरे गालों की लाली
कुछ कहती नजर आए
उसके नयनों की भाषा
कानों में झुमकों की हाला
भीगा तन मन
वह विभोर हुई जाए |
आशा


13 टिप्‍पणियां:

  1. प्रियतम के रंग में डूबी
    भीगी चूनर गौरी की
    गोरे गालों की लाली
    कुछ कहती नजर आए

    ....बहुत खूब! आपने तो अभी से होली का समां बाँध दिया...बहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना..आभार

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  2. बहुत सुन्दर फागुनी बयार सी रचना... आभार

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  3. मदिरा पी ली पीली सरसों, फगुनाहट से झूमे ।

    बार बार बरबस पैरों को, बेहोशी में चूमे ।

    होंठो की मादक लाली को, पिचकारी में भरकर-

    गली गली चौराहे पर वह, कृष्ण ढूँढ़ती घूमे ।।


    दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक
    dineshkidillagi.blogspot.com

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  4. वाह ..त्यौहार की तैयारी
    kalamdaan.blogspot.in

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  5. chaliye holi ka aagaaj to aapne abhi se kar diya.bahut sundar likha hai aasha ji.

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  6. सुंदर भावनाओं की अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति...

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  7. बहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना| आभार|

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  8. अरे वाह ! आनंद आ गया इसे पढ़ कर ! होली के रंग तो जब उडेंगे तब उडेंगे लेकिन आपकी रचना ने तो अभी से मन को रंगीन कर दिया ! बहुत सुन्दर रचना है !

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