भूली सारे राग रंग
पड़ते ही धरा पर कदम
स्वप्न सुनहरा
ध्वस्त हो गया
सच्चाई से होते ही
वास्ता
दिन पहले रंगीन
हुआ करते
थे
भरते विविध रंग जीवन में
थी राजकुमारी सपनों
की
खोई रहती थी उनमें
पर अब ऐसा कुछ भी
नहीं
है एक जर्जर मकान
और आवरण बदहाली का
देख इसे हताशा
जन्मीं
घुली कटुता जीवन में
फिर साहस ने साथ
दिया
और कूद पडी अग्नी में
सत्य की परिक्षा के
लिए
दिन रात व्यस्त रहती
कब दिन बीतता कब रात
होती
वह जान नहीं पाती
अब है समक्ष उसके
जर्जर मकान और जलता
दिया
बाती जिसकी घटती
जाती
कसमसाती बुझने के
लिए
गहन विचार गहरी पीड़ा
लिए
थकी हारी वह सोचती
कहीं कहानी दीपक की
है उसी की तो नहीं |
आशा
थकी हारी वह सोचती
जवाब देंहटाएंकहीं कहानी दीपक की
है उसी की तो नहीं |
गहरी पीड़ा...गहन विचार...
भावों से नाजुक शब्द को बहुत ही सहजता से रचना में रच दिया आपने.........
जवाब देंहटाएंगहरे भाव।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।
एक आम स्त्री के जीवन की कहानी को बड़ी सुंदरता के साथ चित्रित कर दिया है आपने रचना में ! बहुत बहुत बधाई !
जवाब देंहटाएंदिन रात व्यस्त रहती
जवाब देंहटाएंकब दिन बीतता कब रात होती
वह जान नहीं पाती
अब है समक्ष उसके
जर्जर मकान और जलता दिया
बाती जिसकी घटती जाती
कसमसाती बुझने के लिए
गहन विचार गहरी पीड़ा लिए
थकी हारी वह सोचती
कहीं कहानी दीपक की
है उसी की तो नहीं |
आशा
भाव सौन्दर्य इस रचना में देखते ही बनता है
दिन रात व्यस्त रहती
जवाब देंहटाएंकब दिन बीतता कब रात होती
वह जान नहीं पाती
अब है समक्ष उसके
जर्जर मकान और जलता दिया
कोमल भावों की प्रभावशाली प्रस्तुति।
कितनी सार्थक/बहुमूल्य रचना..
जवाब देंहटाएंसादर
sundar bhav sanyojan
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्दों में कोमल अहसासों में भिंगोती रचना..
जवाब देंहटाएंप्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंsundar rachna,ache shbdon se sjaya aap ne ise.bdhaai
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति , सुन्दर शब्दों व भावों से परिपूर्ण.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...
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