खेलते बच्चे मेरे घर के सामने
करते शरारत शोर मचाते
पर भोले मन के
उनमें ही ईश्वर दीखता
बड़े नादाँ नजर आते
दिल के करीब आते जाते
निगाह पड़ी पालकों पर
दिखे उदास थके हारे
हर दम रहते व्यस्त
बच्चों के लालनपालन में
रहते इतनी उलझनों में
खुद को भी समय न दे पाते
फिर देखा एक और सत्य
बड़े होते ही उड़ने लगते
भूलते जाते बड़ों को
उनके प्रति कर्तव्यों को
कई बार विचार किया
फिर निश्चय किया
कोइ संतान ना चाहेंगे
बस यूँ ही खुश रह लेंगे
पर आज मैं और वह
जी रहे नीरस जीवन
ना चहलपहल ना रौनक घर में
आसपास फैली उदासी
अब लग रहा निर्णय गलत
जो पहले हमने लिया था
बच्चे तो हैं घर की रौनक
है आवश्यक उनका भी होना
घर है उनके बिना अधूरा
पर जब तक
आवश्यकता समझी
आवश्यकता समझी
बहुत देर हो चुकी थी |
\आशा
sarthak par marmik post hae .yah kaesa faesla ?
जवाब देंहटाएंऐसे फैसले भी लिए जाते हैं ? विचारणीय रचना
जवाब देंहटाएंविचारणीय,अच्छी प्रस्तुति,इस सुंदर रचना के लिए बधाई,...
जवाब देंहटाएंNEW POST ...काव्यान्जलि ...होली में...
NEW POST ...फुहार....: फागुन लहराया...
marmik......
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया..
जवाब देंहटाएंसोचने में मजबूर करती रचना.....
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक और सटीक अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंसचमुच बच्चे घर की रौनक होते हैं, उनके बिना आँगन सूना है...
जवाब देंहटाएंमार्मिक रचना...
बहुत ही अच्छा लिखा है..... उम्दा प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंशुक्रवारीय चर्चा मंच पर आपका स्वागत
जवाब देंहटाएंकर रही है आपकी रचना ||
charchamanch.blogspot.com
sach hai bachchon ke bina sansar soona hai.sunder rachna.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर,
जवाब देंहटाएंआप सभी सम्माननीय दोस्तों एवं दोस्तों के सभी दोस्तों से निवेदन है कि एक ब्लॉग सबका
( सामूहिक ब्लॉग) से खुद भी जुड़ें और अपने मित्रों को भी जोड़ें... शुक्रिया
bacche ghar ki raunak hote hain
जवाब देंहटाएंआशा माँ.......बच्चे ही तो अपना ही संसार हैं .....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक लिखा हैं आपने
बच्चों से ही तो जीवन जीवन सा लगता है ! सोचने के लिये प्रेरित करती एक सार्थक रचना ! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंसरल , सरस, सहज व मार्मिक कविता... सादर.
जवाब देंहटाएंहोली की शुभकामनाएं
सुन्दर मार्मिक और हृदयस्पर्शी प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसटीक अभिव्यक्ति ... मौन कर गयी ये रचना ...
जवाब देंहटाएं