09 मई, 2012

आँखें नम ना करना


निकली जो आहें  दिल से
पहुंचे यदि तुम तक मत  सुनना
मेरे दिल सा तुम्हारा दिल भी टूटे ना
तपती धूप में भी 
तुम्हारे पैर कभी जलें ना
अंधकार में भी भय तुम्हें हो ना
सुकून तुम्हें  ना दे पाऊँ 
ऐसा  कभी हो ना
मेरे जैसा सोच तुम्हारा
 निराशा लिए हो ना
रात्रि में साम्राज्य 
अनिद्रा का कभी हो ना
छू ना पाए कभी उदासी
कांटे भी दामन तुम्हारा
 छू पाएं  ना
झूटी कसमें झूठे वादों का 
भरम तुम्हे हो ना
करना ना स्वीकार 
कभी ऐसा  बंधन
जो स्वीकार्य तुम्हें हो ना
 कारण मेरी उदासी का खोजना ना
जान भी लो तो कभी
 सच मानना ना
 रख के दूर उसे खुद से 
नृत्य देखना मोर का
पर उसके आंसुओं पर जाना ना
उसके पैरों में
 पायल हैं या नहीं
या कहीं गुम हो गईं सोचना ना
कोयल सी कुहुकती रहना
वन उपवन महकाना
दुःख के सागर में खो
 आँखें नम ना करना |
आशा 

15 टिप्‍पणियां:

  1. वात्सल्य से भरी शुभकामना पढकर मन प्रसन्न हो गया!

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  2. कोयल सी कुहुकती रहना वन उपवन महकाना
    दुःख के सागर में खो आँखें नम ना करना |
    भाव प्रबल ....सुंदर कविता ...

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  3. भावपूर्ण एवं सात्विक शुभकामना से ओतप्रोत बेहतरीन रचना ! बहुत ही सुन्दर !

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  4. इक शेर याद आ रहा है-
    रोने वाले तुझे रोने का सलीक़ा भी नहीं,
    अश्क़ पीने के लिए है के बहाने के लिए?

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...आभार

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  5. इतनी अच्छी दुआएं भावविभोर कर गईं... सुन्दर भावपूर्ण रचना... सादर

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  6. कोयल सी कुहुकती रहना वन उपवन महकाना
    दुःख के सागर में खो आँखें नम ना करना |

    दिल से दुआ देती हुई सुंदर अभिव्यक्ति,...

    RECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....

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  7. दुःख के सागर में खो
    आँखें नम ना करना

    बहुत खूब .. सार्थक सन्देश

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  8. संवेदनशील रचना अभिवयक्ति.....

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  9. भाव प्रबल,सुंदर संवेदनशील कविता

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  10. आदरणीया आशा अम्मा जी
    सादर प्रणाम !

    कोयल सी कुहुकती रहना
    वन उपवन महकाना
    दुःख के सागर में खो
    आँखें नम ना करना

    अच्छा मार्ग दिखाया है आपने सुंदर शब्दों और भावों द्वारा …

    हार्दिक शुभकामनाएं !
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  11. खूबसूरत भाव लिए सम्पूर्ण रचना

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