12 मई, 2012

अंतर्प्रवाह


कई विधाएं जीवन की
धाराओं में सिमटीं
संगम में हुईं  एकत्र
प्रवाहित हुईं
लिया रूप नदिया का 
 विचारों की नदिया सतत
बहती निरंतर
 भाव नैया में बैठ
चप्पू चलाए शब्दों के
कई बार हिचकोले खाए
नाव डगमगाई
 उर्मियों की बाहों में
फिर भी तट तक पहुच पाया
ना खोया  अंतर्प्रवाह में
प्रतिबन्ध लगे
निष्काषित हुआ
सहायता भी ना मिल पाई
भटका यहाँ वहाँ
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर
कई सवालिया चिन्ह लगे
बात बढ़ी बहस छिड़ी

तब भी कहीं ना  रुक पाया
विचारों की सरिता में फिर से
प्रवाह मान  ऐसा हुआ
 विचार व्यक्त करने से
स्वयं को ना रोक पाया |
आशा






11 टिप्‍पणियां:

  1. विचारों की नदिया सतत
    बहती निरंतर
    भाव नैया में बैठ
    चप्पू चलाए शब्दों के
    उत्तमोत्तम रचना.....
    सादर नमन

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  2. उर्मियों की बाहों में
    फिर भी तट तक पहुच पाया
    ना खोया अंतर प्रवाह में
    प्रतिबन्ध लगे
    निष्काषित हुआ
    सहायता भी ना मिल पाई......

    अति उत्तम रचना ......

    MY RECENT POST.....काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...

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  3. विचारों की नदिया सतत अविरल बहती रहे... सुन्दर अभिव्यक्ति... सादर

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  4. ऐसी कवितायेँ ही मन में उतरती हैं ॥

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  5. भाव नैया में बैठ
    चप्पू चलाए शब्दों के
    कई बार हिचकोले खाए
    नाव डगमगाई
    उर्मियों की बाहों में
    फिर भी तट तक पहुच पाया
    ना खोया अंतर प्रवाह में

    बहुत सुंदरता के साथ विचारों को बाँधा है ! यह नैया हर तूफ़ान का मुकाबला कर इसी तरह सतत बहती रहे यही मंगलकामना है ! बेहतरीन रचना के लिये बधाई आपको !

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  6. bicharon ke aweg ko rokna bahut muskil hai...kavi kee jeewan paryant chalne wali manha sthiti ks sajeev chitran,,sadar pranam ke sath

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  7. भाव नैया में बैठ
    चप्पू चलाए शब्दों के.

    इस मंथन का फल भी मधुर है. सुंदर प्रस्तुति.

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