था कभी गुलजार
कहीं से एक पक्षी आया
चौंच डाल उसमें
नष्ट उसे करना चाहा
पर वह चूक गया
असफल रहा
चिड़िया ने आवाज उठाई
चौच मार आहात किया
उसे बहुत भयभीत किया
वह डरा या थी मजबूरी
वह चला गया
नीड़ देख आहात हुई
चिंता में डूबी सोच रही
क्यूं ना इसे इतना
मजबूत बनाऊं
फिर से कोई क्षति ना हो
आने वाली पीढ़ी इसे
और अधिक मजबूती दे
कभी ना हो नुकसान इसे
वह तो दुनिया छोड़ गयी
संताने लिप्त निजी स्वार्थ में
आपस में लडने मरने लगीं
चौच मारती आहात करतीं
पर नीड़ की चिंता नहीं
भूले अपनी जन्म स्थली
माँ की नसीहत भी भूले
कई सुधारक आये भी
पर कुछ ना कर पाए
आज भी वह लटका है
जीर्ण क्षीण अवस्था में
उसी वृक्ष की टहनी पर |
आशा
बढियां भाव |
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें ||
बहुत सुंदर आशा जी.....
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति....
सादर.
बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति, बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंअति सुंदर भाव पुर्ण अभिव्यक्ति ,...इस रचना के लिए बहुत२ बधाई ,.....
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST ,...काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...
हकीकत है ये....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना...
देश की वर्तमान दुर्दशा, इसके निष्ठावान समर्पित नेताओं के संघर्ष और बलिदान तथा नयी पीढ़ी से उनकी लगाई हुई उम्मीदों के टूट कर बिखर जाने को आपने बहुत मुखर अभिव्यक्ति दी है ! बहुत ही प्रभावशाली एवं प्रासंगिक प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना ..
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें ..!
गहरे अर्थ समेटे सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपकी क़िताब पढ़ रहा हूँ दीदी
आज कल के परिवारों का कड़वा सच ....सार्थक लेखनी
जवाब देंहटाएंअपने अपने स्वार्थ में जब सब लग जाते अहिं तो ऐसा ही होता है ...
जवाब देंहटाएंबहुत गहरी बात करती है ये रचना ...
गंभीर बात को कहती गहन भवाव्यक्ति...
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