14 मई, 2012

नीड़

वृक्ष पर एक घोंसला 
था कभी गुलजार 
कहीं से एक पक्षी आया 
चौंच डाल उसमें 
नष्ट उसे करना चाहा 
पर वह चूक गया 
असफल रहा 
चिड़िया ने आवाज उठाई 
चौच मार आहात किया 
उसे  बहुत भयभीत किया 
वह डरा या थी मजबूरी 
वह चला गया 
नीड़ देख आहात हुई 
चिंता में डूबी सोच रही 
क्यूं ना इसे इतना 
मजबूत बनाऊं 
फिर से कोई क्षति ना हो
आने वाली पीढ़ी इसे
 और अधिक मजबूती दे 
 कभी ना  हो  नुकसान  इसे
वह तो दुनिया छोड़ गयी 
संताने लिप्त निजी स्वार्थ में 
आपस में लडने मरने लगीं
 चौच मारती आहात करतीं 
पर नीड़ की चिंता नहीं
भूले अपनी जन्म स्थली 
माँ की नसीहत भी भूले 
कई सुधारक आये भी 
पर कुछ ना कर पाए 
आज भी वह लटका है
 जीर्ण क्षीण अवस्था में
उसी वृक्ष की टहनी पर |
आशा


11 टिप्‍पणियां:

  1. बढियां भाव |
    शुभकामनायें ||

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  2. बहुत सुंदर आशा जी.....

    सुंदर अभिव्यक्ति....

    सादर.

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  3. बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति, बेहतरीन रचना

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  4. अति सुंदर भाव पुर्ण अभिव्यक्ति ,...इस रचना के लिए बहुत२ बधाई ,.....

    MY RECENT POST ,...काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...

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  5. हकीकत है ये....
    बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना...

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  6. देश की वर्तमान दुर्दशा, इसके निष्ठावान समर्पित नेताओं के संघर्ष और बलिदान तथा नयी पीढ़ी से उनकी लगाई हुई उम्मीदों के टूट कर बिखर जाने को आपने बहुत मुखर अभिव्यक्ति दी है ! बहुत ही प्रभावशाली एवं प्रासंगिक प्रस्तुति !

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  7. भावपूर्ण रचना ..
    शुभकामनायें ..!

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  8. गहरे अर्थ समेटे सुंदर प्रस्तुति
    आपकी क़िताब पढ़ रहा हूँ दीदी

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  9. आज कल के परिवारों का कड़वा सच ....सार्थक लेखनी

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  10. अपने अपने स्वार्थ में जब सब लग जाते अहिं तो ऐसा ही होता है ...
    बहुत गहरी बात करती है ये रचना ...

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  11. गंभीर बात को कहती गहन भवाव्यक्ति...

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