सीमेंट के इस जंगल में
चारों ओर दंगल ही दंगल
वाहनों की आवाजाही
भीड़ से पटी सड़कें
घर हैं या मधुमक्खी के छत्ते
अनगिनत लोग रहते
एक ही छत के नीचे
रहते व्यस्त सदा
रोजी रोटी के चक्कर में
आँखें तरस गयीं
हरियाली की एक झलक को
कहने को तो पेड़ लगे हैं
पर हैं सब प्लास्टिक के
हरे रंग से पुते हुए
दिखते सब असली से
नगर सौन्दरीकरण के नाम पर
जाने कितना व्यय हुआ
पर वह बात कहाँ
जो है प्रकृति के आंचल में
सांस लेने के लिए भी
सहारा कृत्रिम वायु का
ठंडक के लिए सहारा
कूलर और ए.सी. का
ठंडक के लिए सहारा
कूलर और ए.सी. का
है आज की जीवन शैली
इन बड़े शहरों की
सीमेंट सरियों से बने
इस जंगल के घरोंदों की
और वहा रहने वालों
की |
आशा
सुंदर रचना,..बहुत अच्छी भावपूर्ण अभिव्यक्ति,,,,,,
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
MY RECENT POST,,,,फुहार....: बदनसीबी,.....
टिप्पणी हेतु आभार |
हटाएंआशा
बहुत सुंदर और सटीक चित्रण....आभार
जवाब देंहटाएंआजकल के शहरी जीवन का बड़ी सूक्ष्मता के साथ अध्ययन किया है आपने ! सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति के लिए शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंपर वह बात कहाँ
जवाब देंहटाएंजो है प्रकृति के आंचल में
सांस लेने के लिए भी
सहारा कृत्रिम वायु का.....sahi bat...
आप लोगों की टिप्पणी से लेखन को बल मिलता है |टिप्पणी हेतु आभार
हटाएंशहरी जीवन कृत्रिम बनकर रह गया है , सब कुछ नकली बनावटी, सही कहा है आपने... सटीक प्रस्तुति के लिए आभार
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु आभार संध्या जी |
हटाएंआशा
कभी कभी बहुत खीज होती है इस सीमेंट के जंगलात से.... धरती अलग प्यासी मरी जा रही है...
जवाब देंहटाएंशहरी जीवन की कृत्रिमता बहुत खलती है |शायद उसी की प्रतिक्रिया हैं |
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु आभार |
आशा
शास्त्री जी चर्चा मंच में रचना शामिल करने के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंआशा
kankreeto ke bante jangal
जवाब देंहटाएंrocke bhee jaate hain mangal
nayi nayi rituyein jawan hain
lekin wo madhumas nahi hai''''''''''wakai ham apni utpatti ke adhar se satat door ho rahe hai aur shayad yahi hamare liye sabse bada chinta ka sabab hai ..sacchai chup nahi sakti banawat ke usulon se..khusboo aa nahi sakti hai kagaj ke phoolon se...bahut hee shandaar rachna..sadar badhayee aaur sadar amantrn ke sath
bahut sundar aur sateek:)
जवाब देंहटाएंये विकास की है गाथा
जवाब देंहटाएंया रुदन है प्रकृति का!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति .आभार
जवाब देंहटाएंआपकी इस रचना को कविता मंच पर साँझा किया गया है
जवाब देंहटाएंसंजय भास्कर
http://kavita-manch.blogspot.in