22 मई, 2012

एक अहसास


बैठ पार्श्व में अपनत्व जताया
केशपाश में  ऐसा बंधा
जाने की राह ना खोज पाया
कुछ अलग सा अहसास हुआ
परी लोक में विचरण करती
उनकी  रानी सी लगी
उसी पल में जीने लगी
पलकें जब भी बंद हुईं
वही दृश्य साकार हुआ
पर ना जाने एक दिन
कहीं गुम हो गया न लौटा
ना ही  कोई समाचार आया
एकाकी जीवन बोझील  लगा
हर कोशिश बेकार गयी
है जाने कैसी माया
उस अद्भुद अहसास से
दूर रह नहीं पाती
मोह छूटता नहीं
आस मिटती नहीं
इधर उधर चारों तरफ
वही उसे नजर आता
जैसे ही दूरी हटना चाहती 
अंतर्ध्यान हो जाता
सालने लगे अधूरापन व रिक्तता
हर बार यही विचार आता
क्या  सत्य हो पाएगा
 वह दृश्य  कभी |

10 टिप्‍पणियां:

  1. इधर उधर चारों तरफ
    वही उसे नजर आता
    जैसे ही दूरी हटना चाहती
    अंतर्ध्यान हो जाता

    वाह ,,,, बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,,

    RECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....

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  2. सपने और जागते में देखे सपने काश सच होने लगें ...
    जीवन आसान हो जायगा ...

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  3. सपनॉ के पीछे भागता मन .....सुब्दर रचना ...

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  4. इधर उधर चारों तरफ
    वही उसे नजर आता
    जैसे ही दूरी हटना चाहती
    अंतर्ध्यान हो जाता....बेजोड़ भावाभियक्ति....

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  5. इधर उधर चारों तरफ
    वही उसे नजर आता
    जैसे ही दूरी हटना चाहती
    अंतर्ध्यान हो जाता

    Thanks
    http://drivingwithpen.blogspot.in/

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  6. मृग मरीचिकाओं के पीछे भागना इंसान की फितरत है और ऐसे में उसे हमेशा हताशा का ही सामना करना पडता है ! सुन्दर रचना !

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  7. इधर उधर चारों तरफ
    वही उसे नजर आता
    जैसे ही दूरी हटना चाहती
    अंतर्ध्यान हो जाता
    बहुत ही बढि़या

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