बैठ पार्श्व में अपनत्व जताया
केशपाश में ऐसा बंधा
जाने की राह ना खोज पाया
कुछ अलग सा अहसास हुआ
परी लोक में विचरण करती
उनकी रानी सी लगी
उसी पल में जीने लगी
पलकें जब भी बंद हुईं
वही दृश्य साकार हुआ
पर ना जाने एक दिन
कहीं गुम हो गया न लौटा
ना ही कोई समाचार आया
एकाकी जीवन बोझील लगा
हर कोशिश बेकार गयी
है जाने कैसी माया
उस अद्भुद अहसास से
दूर रह नहीं पाती
मोह छूटता नहीं
आस मिटती नहीं
इधर उधर चारों तरफ
वही उसे नजर आता
जैसे ही दूरी हटना चाहती
अंतर्ध्यान हो जाता
सालने लगे अधूरापन व रिक्तता
हर बार यही विचार आता
क्या सत्य हो पाएगा
वह दृश्य कभी |
इधर उधर चारों तरफ
जवाब देंहटाएंवही उसे नजर आता
जैसे ही दूरी हटना चाहती
अंतर्ध्यान हो जाता
वाह ,,,, बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,,
RECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....
सपने और जागते में देखे सपने काश सच होने लगें ...
जवाब देंहटाएंजीवन आसान हो जायगा ...
सपनॉ के पीछे भागता मन .....सुब्दर रचना ...
जवाब देंहटाएंइधर उधर चारों तरफ
जवाब देंहटाएंवही उसे नजर आता
जैसे ही दूरी हटना चाहती
अंतर्ध्यान हो जाता....बेजोड़ भावाभियक्ति....
इधर उधर चारों तरफ
जवाब देंहटाएंवही उसे नजर आता
जैसे ही दूरी हटना चाहती
अंतर्ध्यान हो जाता
Thanks
http://drivingwithpen.blogspot.in/
sunder prastuti..sadar badhayee aaur sadar amantran ke sath
जवाब देंहटाएंमृग मरीचिकाओं के पीछे भागना इंसान की फितरत है और ऐसे में उसे हमेशा हताशा का ही सामना करना पडता है ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंइधर उधर चारों तरफ
जवाब देंहटाएंवही उसे नजर आता
जैसे ही दूरी हटना चाहती
अंतर्ध्यान हो जाता
बहुत ही बढि़या
sundar kavita sundar bhav
जवाब देंहटाएंसटीक विचार ...बहुत खूब
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