26 मई, 2012

जीवन एक लकीर सा


जीवन ने बहुत कुछ सिखाया
पर आत्मसात करने में
 बहुत देर हो गयी
हुए अनुभव कई
कुछ सुखद तो कुछ दुखद
पर समझने में
 बहुत देर हो गयी
साथ निभाया किसी ने
कोई  मझधार में ही छोड़ चला
सच्चा हमदम न मिला
लगा जीवन एक लकीर सा
जिस पर लोग चलते जाते
लीक से हटाना नहीं चाहते
रास्ता कभी सीधा तो कभी
टेढ़ी मेढ़ी  पगडंडी सा
 सांस खुली हवा में लेते
कभी घुटन तंग गलियों की सहते
दृष्टिकोंण फिर भी सबका
एकसा नहीं होता
दृश्य वही होता
पर प्रतिक्रियाएँ भिन्न सब की
लेते दृश्य उसी रूप में
जो मन स्वीकार कर पाता
लकीर जिंदगी की
कहाँ से हुई प्रारम्भ
और कहां  तक जाएगी
जान नहीं पाया
है छोर कहाँ उसका
समझ नहीं पाया |

आशा

23 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. आपका नियमित ब्लॉग पर आना बहुत अच्छा लगता है |टिप्पणी हेतु धन्यवाद |
      आशा

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  2. लकीर जिंदगी की
    कहाँ से हुई प्रारम्भ
    और कहां तक जाएगी
    जान नहीं पाया
    है छोर कहाँ उसका
    कोई नहीं समझ पाया... सुन्दर अभिव्यक्ति...सादर

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  3. लगा जीवन एक लकीर सा
    जिस पर लोग चलते जाते
    लीक से हटाना नहीं चाहते
    रास्ता कभी सीधा तो कभी
    टेढ़ी मेढ़ी पगडंडी सा............

    बहुत सुंदर आशा जी...
    सादर.
    अनु

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  4. उत्तर
    1. आपने वर्ड वेरीफिकेशन हटाने का तरीका बहुत सरलता से समझाया धन्यवाद |टिप्पणी हेतु भी धन्यवाद |
      आशा

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  5. सुन्दर सारगर्भित एवं सशक्त रचना ! बहुत बढ़िया !

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    1. आज गाने तराने पर तुमने बहुत प्यारा गीत डाला था |मुझे तुम्हारे कमेन्ट की उत्सुकता से प्रतीक्षा रहती है |टिप्पणी हेतु धन्यवाद |
      आशा

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  6. जिन्दगी के यथार्थ को बताती सार्थक अभिवयक्ति....

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    1. टिप्पणी हेतु धन्यवाद |ऐसा ही प्रेम बनाए रखें |
      आशा

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  7. जीवन ने बहुत कुछ सिखाया
    पर आत्मसात करने में
    बहुत देर हो गयी
    हुए अनुभव कई
    कुछ सुखद तो कुछ दुखद
    पर समझने में
    बहुत देर हो गयी... और इस देरी का क्या जवाब दें ! बहुत कुछ है इस अभिव्यक्ति में ...

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    1. रश्मि जी ,टिप्पणी के लिए आभार आपकी टिप्पणी लिखने के लिए प्रोत्साहित करती है |इसी प्रकार स्नेह बनाए रखें |
      आशा

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  8. क्या बात है!!
    आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 28-05-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-893 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  9. इस रंग-बिरंगी दुनिया में सब भरमा जाते हैं !

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    1. प्रतिभा दीदी आपको अपने ब्लॉग पर देख बहुत अच्छा लगता है |इसी प्रकार स्नेह बनाए रखें |

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  10. अंसुलझि गुत्थि सा ही रह जाता है जीवन ...
    सुंदेर रचना ....!!
    शुभकामनायें.

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    1. अनुपमा जी टिप्पणी के लिए धन्यवाद |
      आशा

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  11. ज़िंदगी में आने वाले हर लम्हे के गुज़र जाने के बाद ज्यादा तर यही लगता है कि बहुत देर हो गई....सार्थक अभिव्यक्ति

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  12. वाह ... बहुत ही अच्‍छे भाव

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  13. सदा जी बहुत दिनों बाद आपकी टिप्पणी मिली है अपना स्नेह इसी प्रकार बनाए रखें |
    आशा

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