01 जून, 2012

यादें भर शेष रहा गईं

 सपनों की चंचलता बहुत कुछ
सागर की उर्मियों सी
भुला न पाई उन्हें
कोशिश भी तो नहीं की |
बार बार उनका आना
हर बार कोई संदेशा लाना
मुझे बहा ले जाता
किसी अनजान दुनिया में |
उसी दुनिया में जीने  की ललक
बढ़ने लगती ले जाती  वहीँ
 अचानक एक ठहराव आया
 मन के गहरे सागर में |
फिर चली सर्द हवा
उर्मियों ने सर उठाया
आगे बढ़ीं टकराईं
पर हो हताश लौट आईं |
यह ठहराव बदल गया
समूंचे जीवन की राह
अब न कोई स्वप्न रहे
ना ही कभी याद आए |
भौतिक जीवन की
 जिजीविषा की
बेरंग होते  जीवन की
 यादें भर शेष  रह गईं |

आशा

17 टिप्‍पणियां:

  1. सच भौतिक जीवन में बस यादें ही शेष रह जाती हैं

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  2. भौतिक जीवन की
    जिजीविषा की
    बेरंग होते जीवन की
    यादें भर शेष रह गईं |बहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....

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  3. यादें भर ही शेष रह जाती हैं...
    सुन्दर कविता!

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  4. बहुत खूबसूरत रचना है ! यादें ही जीवन की अनमोल धरोहर होती हैं जो सदा साथ रहती हैं ! बहुत अच्छी रचना ! तराने सुहाने पर आपका पसंदीदा गीत डाला है मैंने ! उसे भी सुन लीजियेगा !

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  5. सुन्दर रचना प्रस्तुति...आभार

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  6. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

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  7. Jeevan hai hi aisa...n yaadein jaati hain..aur kabhi kabhi aati bhi nahin...bahut sundar prastuti...

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  8. बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति

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  9. उर्मियों ने सर उठाया
    आगे बढ़ीं टकराईं....
    यह ठहराव बदल गया
    समूंचे जीवन की राह

    सुंदर रचना....
    सादर।

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  10. भौतिक जीवन की
    जिजीविषा की
    बेरंग होते जीवन की
    यादें भर शेष रह गईं |

    ....बहुत गहन और सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  11. भौतिक जीवन की
    जिजीविषा की
    बेरंग होते जीवन की
    यादें भर शेष रह गईं |......आशा जी बहुत ही गहन और सुन्दर अभिव्यक्ति...मेरे ब्लांग में आने के लिए आभार....

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