06 जून, 2012

निडर


हो निडर घूम रही   
जंगल  की पनाह में 
आवाज से दहशत भरती
लोगों के दिलों  में
पर क्या वह माँ नहीं 
उसे ममता का 
लेशमात्र भी अहसास नहीं ?
पर ऐसा कुछ नहीं
हैं ममता के रूप अनेक
वह  भी  है  सतर्क माँ 
सहेज रही अपने बच्चों को 
सचेत कर रही उन्हें
 आने वाले खतरों से 


वह  जानती है अभी छोटे हैं
  दुनिया की रीत नहीं जानते
यहाँ के रास्ते नहीं पहचानते
यदि इधर उधर भटक गए
सुरक्षा होगी कठिन
शायद इसी लिए 
  साथ लिए फिरती है
यदि कोई अंदेशा हो 
सचेत उन्हें करती है |

आशा 



14 टिप्‍पणियां:

  1. कल 07/06/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. शायद इसी लिए
    साथ लिए फिरती है
    यदि कोई अंदेशा हो
    सचेत उन्हें करती है |

    ये प्राणी जीव का कुदरती स्वभाव है,,,,,

    MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,

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  3. शायद इसी लिए
    साथ लिए फिरती है
    यदि कोई अंदेशा हो
    सचेत उन्हें करती है |behtreen abhivaykti....

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  4. maa to maa hai ishvar hi maa ke rup me bachho ke pas rahata hai
    bahut sundar kavita

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  5. sundar kavita
    Thanks
    http://drivingwithpen.blogspot.in/
    bahut dino se aap aayi nahi mere blog par
    bhul gai hain kya hame

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  6. अरे वाह ! बांधवगढ़ के हम लोगों की यात्रा के सुन्दर चित्र देख कर मन प्रसन्न हो गया ! रचना भी उतनी ही प्यारी है ! जहां तक माँ के रूप का सवाल है अपने बच्चों की रक्षा के लिए एक शेरनी माँ मानवी बन सकती है और आपादकाल में एक मानवी माँ शेरनी बन जाती है ! मज़ा आ गया आज !

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  7. वाह ...बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

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  8. माँ हर रूप में सिर्फ माँ है

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  9. माँ...बस माँ है....
    सुंदर रचना
    सादर।

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  10. वाह बहुत खूब ......माँ कोई भी हो ...रूप रंग भले ही अलग अलग हो ...पर वो माँ हैं ....

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