वही सारी कायनात
कुछ भी नया नहीं
फिर भी कुछ सोच
कुछ दृश्य अदृश्य
दिखाई दे जाते
कुछ खास कर
गुजर जाते
फिर शब्दों की हेराफेरी
जो भी लिखा जाता
नया ही नजर आता
खाली आसव की बोतल में
भर कर उसे परोसा जाता
बोतल बदलती
साकी बदलती
पर हाला का प्रभाव
बदल नहीं पाता
उससे उत्पन्न सुरूर में
कुछ कहता
कुछ छुपा जाता
जो कहना चाहता
बेखौफ़ कहता
होगा क्या परिणाम
वह सोच नहीं पाता |
आशा
आदरणीय आशा माँ
जवाब देंहटाएंनमस्कार !!
कुछ खास कर
गुजर जाते
फिर शब्दों की हेराफेरी
जो भी लिखा जाता
................बहुत उम्दा प्रस्तुति!
पतझड में जैसे कली खिली, पीकर ऐसा दिखता है,
जवाब देंहटाएंगर्मी की लपटे सर्द हवा, इसको पीकर ही लगता है!
घनघोर घटा में सुर्ख धुंआ,आँसू बन कर आ जाते है,
जब गम के बादल छाते है,तब मधुशाला हम जाते है
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बहुत बहुत आभार ,,
बहुत सुन्दर आशा जी...
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा है
जवाब देंहटाएंहाला के सुरूर में जो कुछ भी कहा जाता है वह भी विश्वसनीय कहाँ होता है ! पीने वाला सच कहता भी है तो लोग भरोसा नहीं करते ! अच्छी रचना !
जवाब देंहटाएंbahut badhiya
जवाब देंहटाएंबहुत खूब , सुंदर कविता .....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविता
जवाब देंहटाएंसादर
लाजवाब कविता है .. भावमय ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति...
वाह बहुत खूब .......सादर
जवाब देंहटाएंbhavmayee shandaar rachna..sadar badhayee ke sath
जवाब देंहटाएंकुछ कहता
जवाब देंहटाएंकुछ छुपा जाता
जो कहना चाहता
बेखौफ़ कहता
बहुत सुन्दर....
वाह सच लिखा है ...!!
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना आशा जी ..!!
शुभकामनायें ..!
लाजवाब....
जवाब देंहटाएंसादर।