31 अगस्त, 2012

एक सुरमई शाम

सुरमई शाम छलकते जाम 
साथ हाला का और मित्रों का
  फिर भी उदासी गहराई
अश्रुओं की बरसात हुई
सबब उदासी का 
जो उसने बताया 
था तो बड़ा अजीब पर सत्य
रूठ गई थी उसकी प्रिया
की मिन्नत बार बार 
वादे भी किये हजार
पर  नहीं मानी 
ना आना था ना ही आई 
सारी  महनत व्यर्थ हो गयी 
वह कारण  बनी उदासी का 
 तनहा बैठ एक कौने में
कई जाम खाली किये
डूब  जाने के लिए हाला  में
पर फिर  से लगी आंसुओं की झाड़ी 
वह  जार जार रोता था 
शांत  कोइ उसे न कर पाया
उदासी से रिश्ता वह तोड़ न पाया 
बादलों  के धुंधलके से बच नहीं पाया
वह अनजान   न था उस धटना से
दिल का दर्द उभर कर
हर बार आया
उदासी  से छुटकारा न मिल पाया
 उस   शाम को वह
खुशनुमा बना नहीं पाया |
आशा 







4 टिप्‍पणियां:

  1. निष्फल प्रेम की दुखद परिणति तो होती ही है लेकिन हाला के जाम में खुद को डुबोने से भी कुछ हासिल नहीं होता ! सुन्दर रचना !

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  2. ..पर फिर से लगी
    आंसुओं की झाड़ी (आंसुओं की झड़ी ...)
    वह जार जार रोता था
    शांत कोइ उसे (शांत कोई उसे )
    न कर पाया
    उदासी से रिश्ता
    वह तोड़ न पाया
    बादलों के धुंधलके से
    बच नहीं पाया
    उदासी से
    छुटकारा न मिला
    उस सुरमई शाम को
    खुशनुमा बना नहीं पाया |
    आशा कोई उदासी सी उदासी है ,दश्त को देखके घर याद आया .......जाम को टकरा रहा हूँ जाम से ,खेलता हूँ गर्दिशे ऐयाम से ,उनका गम ,उनका तसव्वुर ,अरे !कट रही है ज़िन्दगी आराम से ...

    .यहाँ भी पधारें -
    ram ram bhai
    बृहस्पतिवार, 30 अगस्त 2012
    लम्पटता के मानी क्या हैं ?

    जवाब देंहटाएं

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