प्यार भरा दीवानापन 
कहाँ नहीं खोजा उसने
जब भी हाथ आगे बढ़ाया
मृग तृष्णा में फंसा
पाया 
गुमनाम जिंदगी जीते
जीते 
अकुलाहट बेचैन करे 
मन एकाकी विद्रोह
करे 
साथ उसके कोइ न चले 
बाहर वर्षा की बूंदे
अंतस में भभकती
ज्वाला 
सब लगने लगा छलावा 
कैसे ठंडक मिल पावे 
मन चाहा सब हो  पाए 
खोना बहुत सरल है 
पर पाना आसान नहीं 
है गहरी खाई दौनों
में 
जिसे पाटना सरल नहीं
फासले बढ़ते जाते 
फलसफे बनते जाते 
अपने भी गैर नजर आते
कभी लगती फितरत
दिमागी 
या छलना किसी अक्स
की 
दीवानापन या आवारगी 
हद दर्जे की बेबसी 
बारिश कीअति  हो गयी 
दीवानगी भी गुम हो
गयी 
आँखें नम हो कर रह गईं |आशा

 
 
bahut achchi lagi.....diwanapan.....
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा रचना,,,,
जवाब देंहटाएंसभी ब्लॉगर परिवार को करवाचौथ की बहुत बहुत शुभकामनाएं,,,,,
RECENT POST : समय की पुकार है,
बहुत बढिया ..
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्यार भरा दीवानापन... आभार
जवाब देंहटाएंखाई बनने के पहले ही पाटने का काम शुरू कर देना चाहिए था...! एक बार खाई बन जाए.. फिर पाटना बहुत मुश्किल होता है...
जवाब देंहटाएं~सादर !
बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ! बहुत बढ़िया रचना ! आनंद आ गया !
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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