25 नवंबर, 2012

उलझन


कई  बार विचारों में उलझी
पग आगे बढाए पर हिचकिचाए
थम गए एक मोड पर अकारण
उलझन बढ़ी आशंका जन्मी
कहीं कोइ अनर्थ न हो जाए
मन पर से जाला झटका
मार्ग प्रशस्त किया अपना
पर बिल्ली राह काट गयी
झुक कर एक पत्थर उठाया
आगे फेंक आगे बढ़ी 
एकाएक  छींक आ गयी
शुभ अशुभ के चक्र में फसी
अनजाना भय  हावी हुआ
मन को बार बार समझाया
पर वह स्थिर न हो पाया
सोचा बापिस लौट चलूँ
फिर खुद पर ही हंसी आई
इतना पढना व्यर्थ लगा
यदि वहम से न  बच पाई
मन कडा कर चल पड़ीं
बेखौफ मंजिल तक पहुँची 
अंधविश्वास  से ना घिरी |
आशा

9 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद भावपूर्ण सुन्दर रचना, बहुत-2 बधाई स्वीकारें
    सादर, अरुन शर्मा
    www.arunsblog.in

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  2. बहुत ख़ूब!
    आपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 26-11-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  3. बहुत बढ़िया ! अंधविश्वास के बंधन काट फेंकना ही श्रेयस्कर है ! वहम हावी होगा तो चित्त कभी स्थिर नहीं हो पायेगा ! अच्छी प्रस्तुति ! कल विदेश यात्रा के लिये रवाना होना है ! अब लगभग एक हफ्ते बाद दिखाई दूँगी ब्लॉग पर ! तब तक के लिये विदा !

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  4. सार्थक सन्देश देती हुई सीधी सच्ची रचना .

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  5. कदम-कदम पर घेरतीं, उलझन हमें अनेक।
    किन्तु कभी मत छोड़ना, अपना बुद्धिविवेक।।

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  6. सरलता से भावों को समेटा है आपने.

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