04 नवंबर, 2012

आवागमन इनका



अहसास इनका
समस्त चेतन जगत में
आवागमन प्रक्रिया सचराचर में
अनुभव सभी करते
लाभ   भी लेते
गति इनकी होती अविराम
फिर भी एक सी नहीं होती
परिवर्तित होती रहती
कभी तीव्र तो कभी मंद
कभी अवरुद्ध भी होती
तभी तो कभी गर्म
तो कभी सर्द आहों का
जलवा नजर आता
इन पर नियंत्रण के लिए
अनेकों यत्न किये जाते
कितनी ही औषधियां लेते
ध्यान योग को अपनाते
पर ऐसा न हो पाता
गति ह्रदय की होती संचालित
इनके ही प्रताप से
इनका है क्या नाता मनुज से
किसी ने न जाना
श्वासों का आना जाना
किसी ने न पहचाना
प्राणों के संग हुई
जब भी बिदाई इनकी
किसी ने इस का अनुभव
यदि  किया भी  हो
उसे सब से बाँट नहीं पाया
क्यूं कि वह बापिस 
लौट कर ही नहीं आया |
आशा

8 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया प्रस्तुती |
    बधाई दीदी ||

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  2. किसी ने इस का अनुभव
    यदि किया भी हो
    उसे सब से बाँट नहीं पाया
    क्यूं कि वह बापिस
    लौट कर ही नहीं आया |

    आपने सही कहा,,,इस अनुभव को कोई नही बाँट सका,,
    अद्भुत अभिव्यक्ति,,,,

    RECENT POST : समय की पुकार है,

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  3. आहें पड़ी बाजार में, तरह तरह की श्वाँस ।

    अक्सर यह सामान्य हैं, कभी कभी अति ख़ास ।

    कभी कभी अति ख़ास, भरें उच्छवासें आशिक ।

    होती अति गतिमान, अगर दौरा आपातिक ।

    वेग पलायन पाय, पकड़ नहिं पाए बाहें ।

    श्वाँस उखड ही जाय, कराहें बचती आहें ।।

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  4. गम्भीर एवं सार्थक रचना ! हर अहसास को बड़ी खूबसूरती के साथ उकेरा है ! बहुत-बहुत बधाई !

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  5. किसी ने न जाना
    श्वासों का आना जाना ..sahi bat....

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  6. बहुत सुदर और गहन रचना....

    सादर
    अनु

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  7. श्वास प्रश्वास पर इतनी सुंदर पर गंभीर रचना के लिेये आपको बधाई ।

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  8. उसे सब से बाँट नहीं पाया
    क्यूं कि वह बापिस
    लौट कर ही नहीं आया |



    जाने वाले कभी लौट के नहीं आते ...

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