होली पर दोहे 
गहरे रंगों में रंगी ,भीगा सारा अंग |
एक रंग ऐसा लगा ,छोड़ ना पाई संग ||
विजया सर चढ़ बोली ,तन मन हुआ अनंग |
चंग संग थिरके कदम ,उठने लगी तरंग ||
कह डाली बात मन की, ओ मेरे ढोलना |
तेरे प्यार में रंगी ,यह भेद न खोलना ||
चल खेलें फाग 
रंग रसिया चल खेलें फाग
होली का रंग जमालें 
लठ्ठ मार होली खेलें 
हो सके तो  खुद को बचाले |
रसिया के रंग में डूबी 
वह खेल रही होली 
मुखड़े पर जब लगा  गुलाल 
वह एक शब्द ना बोली|
मौन स्वीकृति जान उसने 
अपने पास बुलाया 
अनुराग  भरा गुलाल लगा 
उसे अपने गले लगाया|
दूर हुए गिले शिकवे 
वह प्रेम रंग में डूबी 
अपने प्रियतम के संग 
आज  खेल रही होली |
आशा 



