14 जून, 2013

रुसवाई का सबब

आया था तुझसे मिलने
हालेदिल बयां करने 
उदासी में गुम तुझे देख
हुआ व्यस्त कारण खोजने में |
पर सच्चाई जब सामने आई
कोइ कदम उठा न सका 
तेरे ग़म में इतना मशगूल हुआ 
उसे अपना ही ग़म समझ बैठा |
सहारा आंसुओं का लिया 
पर वे भी कमतर होते गए 
जब एक भी शेष न रहा 
खुद से ही अदावत कर बैठा |
आंसू भी जब खुश्क हुए 
और मन की बात कह न सका
प्यार का इज़हार कर न सका 
रुसवाई का सबब बन बैठा |
आशा



18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत उम्दा अभिव्यक्ति ! सुंदर रचना !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तेरी टिप्पणी का बहुत जोरों से इंतज़ार रहता है |
      आशा

      हटाएं
  2. तेरे ग़म में इतना मशगूल हुआ
    उसे अपना ही ग़म समझ बैठा | wastwikta ka bhawpurn warnan ...

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर एहसास का चित्रण रुसवाई का सबब ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. टिप्पणी लेखन को प्रोत्साहन देती है |आभार |
      आशा

      हटाएं
  4. भावुक कर देने वाला एहसास ....

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ख़ूबसूरत भावमयी अभिव्यक्ति...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सर जी आपके ब्लॉग पर अभी जाना नहीं हो पा रहा है |आँख का ओपरेशन हुआ है |अन्यथा न लें |टिप्पणी हेतु धन्यवाद |
      आशा

      हटाएं
  6. उत्तर
    1. अनु जी आपकी टिप्पणी पढ़ना अच्छा लगता है |इस हेतु आभार |
      आशा

      हटाएं
  7. इस हेतु धन्यवाद अरुण जी |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  8. मेरा स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण मैं पूरी लिंक्स नहीं देख पा रही हूँ अन्यथा न लेना |टिप्पणी हेतु आभार

    जवाब देंहटाएं
  9. सुन्दर अभिव्यक्ति ………………।

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: