कुण्डली (१)
क्या यही गलत नहीं ,सागर से की आस
प्यासा प्यासा ही रहा, बुझ ना पाई प्यास
बुझ ना पाई प्यास, सुनो हे बंधू मेरे
वह नमक कहाँ ले जाए ,कहाँ से लाए मिठास |
क्या यही गलत नहीं ,सागर से की आस
प्यासा प्यासा ही रहा, बुझ ना पाई प्यास
बुझ ना पाई प्यास, सुनो हे बंधू मेरे
वह नमक कहाँ ले जाए ,कहाँ से लाए मिठास |
कड़वा कड़वा थू करे ,मीठा सब जग खाय
है जगत की रीत यही ,मीठा अधिक सुहाय
मीठा अधिक सुहाय ,सुनो हे भ्राता मेरे
अति इसकी जो भी करे ,बीमारी बढ़ जाय |
प्यार बढाया आपने ,सौदा किया न कोय
दिन दूना फूला फला ,रोक न पाया कोय
रोक न पाया कोय सोचो किसने की भूल
विसराना ना उसे , ना देना बात को तूल |
आशा
सुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार दीदी-
सुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुती ,आभार।
जवाब देंहटाएंआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवारीय चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंसार्थक सन्देश देतीं सुंदर कुण्डलियाँ ! बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंसुन्दर सन्देशपरक रचना....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंlatest post क्या अर्पण करूँ !
संदेशप्रद कुण्डलियाँ, बधाई.
जवाब देंहटाएंसन्देश प्रदकुण्डली.... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .......!!
जवाब देंहटाएं