आस्था का संबल पा
अवधान को जागृत किया
मेकल सुता की धारा में
कांछ कांछ मन निर्मल किया |
दीपक, बाती , स्नेह से
मन मंदिर का दीप जला
अभ्यर्थना के थाल को सज्जित
पत्र ,पुष्प कुमकुम से किया |
पत्र ,पुष्प कुमकुम से किया |
जब पग बढाए राह पर
झंझावात से नहीं डरे
दीपक की लौ कपकपाई
बाधित वह भी नहीं हुई |
अधिक उजास से भरी
मार्गदर्शक बन उसने
कर्तव्य पूर्ण अपना किया |
आत्म बल से परिपूर्ण
उस पथ पर जाने वालों को
बाँध कर ऐसा रखा
तनिक भी भटकने न दिया |
बहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर
टिप्पणी हेतु धन्यवाद
हटाएंबहुत ही सुन्दर् आभार्..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी
हटाएंनमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (21 -07-2013) के चर्चा मंच -1313 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार |
हटाएंआशा
आत्मबल ही सही रास्ता दिखाता है -अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंlatest post क्या अर्पण करूँ !
latest post सुख -दुःख
धन्यवाद कालीपद जी
हटाएंबहुत सशक्त रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
धन्यवाद रामपुरिया जी |
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंसाझा करने के लिए शुक्रिया!
शास्त्री जी ब्लॉग पर आने के लिए आभार |
हटाएंआत्मबल के महत्त्व को उजागर करती सशक्त प्रस्तुति ! बहुत सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रचना पसंद करने के लिए |
हटाएंआज 22/07/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
इस हेतु आभार यशवंत जी
हटाएंसुन्दर ..!!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंसार्थक भाव लिए बहुत ही सुंदर भावभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद
हटाएंबहुत बेहतरीन अभिव्यक्ति आदरणीया....
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट.....
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति है