तेरी जुल्फ़ों की छाँव तले
एक स्वप्न सजाया मैंने
प्यार की सौगात से
एक घरोंदा बनाया मैंने |
है यही मंदिर मेरा
छोटा सा संसार मेरा
छोटी बड़ी खुशियों का
है अपूर्व भण्डार यहाँ |
दिन भर धटती घटनाओं से
जब कभी क्लांत होता हूँ
पा कर सान्निध्य तेरा
चिंता मुक्त होता हूँ |
यहाँ बिताए हर पल से
जो सुकून मिलता है
तेरी पनाह में रहने का
ख्याल सजीव रहता है
क्षय होता पल पल कहता है
जिन्दगी जी भर कर जी ले
मन में कोइ साध न रहे
सभी पूर्ण कर ले |
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (19-09-2013) आश्वासनों का झुनझुना ( चर्चा - 1373 में "मयंक का कोना" पर भी है!
हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हिन्दी पखवाड़े पर हार्दिक शुभ कामनाएं आपको भी |
हटाएंबढ़िया -
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीया-
धन्यवाद रविकर जी |
हटाएंgharounda aur kavita dono hi badi achchi lagi.....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी हेतु |
हटाएंआशा
मीठी मधुर सी साध लिये बहुत ही सुंदर प्रस्तुति ! बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद पसंद के लिए |
हटाएंआशा
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - शुक्रवार - 20/09/2013 को
जवाब देंहटाएंअमर शहीद मदनलाल ढींगरा जी की १३० वीं जयंती - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः20 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
बहुत सुंदर और शानदार लेखन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए कुशवंश जी |
हटाएंआशा
बेहद सुंदर...सार्थक रचना...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मंजूषा जी टिप्पणी के लिए
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