29 सितंबर, 2013

टीस



शीशा टूटा
किरच किरच बिखरा
हादसा ऐसा हुआ
तन मन घायल कर गया
तन के घाव भरने लगे
समय के साथ सुधरने लगे
मन के घावों का क्या करे
जिनका कोई इलाज नहीं
यूं तो कहा जाता है
समय के साथ हर जख्म
स्वयं भरता जाता है
खून का रिसाव थम जाता है
पर आज जब जीवन की
 शाम उतर आई है
सब यथावत चल रहा है
पर उन जख्मों में
कोई  परिवर्तन नहीं
 रह रह कर टीस उभरती है
बेचैनी बढ़ती जाती है
उदासी घिरती जाती है |

36 टिप्‍पणियां:

  1. आभार दीदी-
    एक और उत्तम रचना-


    तन के जख्मों पे लगे, मरहम रोज सखेद |
    मन के जख्मों को सगे, जाते किन्तु कुरेद |
    जाते किन्तु कुरेद, भेद करते हैं भारी |
    ऊपर ऊपर ठीक, किन्तु अन्दर चिंगारी |
    होना क्या मुहताज, मोह अब छोडो मन के |
    कर के मन मजबूत, खड़े हो जाओ तन के ||

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    1. रवि कर जी प्रतिउत्तर की कविता बहुत ही शानदार है |टिप्पणी हेतु आभार

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  2. आदरणीय आशा जी .. बहुत ही भावपूर्ण रचना .. .. अंतस की गहराई को छूती हुई , मैंने शायद पहली बार पढ़ रहा हूँ बहुत अच्छा लगा ... आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (30.09.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - सोमवार - 30/09/2013 को
    भारतीय संस्कृति और कमल - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः26 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra


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  4. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,धन्यबाद।

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  5. आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [30.09.2013]
    चर्चामंच 1399 पर
    कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
    सादर
    सरिता भाटिया

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  6. कल 30/09/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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  7. मन के घावों की टीस तो शायद ताउम्र रहती है.
    बहरहाल, अछि अभिव्यक्ति के लिए आभार।

    सादर,
    मधुरेश

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  8. हृदय की वेदना को जगाती बहुत ही सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना ! पढ़ कर मन उदास हो गया !

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  9. कुछ जख्म कभी नहीं भरते ... ताज़ा रहते हैं समय के साथ ...

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  10. जी आशा जी कुछ टीस होती हैं जीवन की ऐसी जो भरती नहीं ..लेकिन आइये मधुर यादों को सहेजें
    सुन्दर
    भ्रमर ५

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