05 दिसंबर, 2013

विचारों की श्रंखला



हूँ स्वतंत्रता की पक्षधर
पर हाथ बंधे हैं
आजादी का अर्थ  जानती हूँ
पर जीवन की हर सांस
किसी न किसी परिपाटी में
उलझी है और
संस्कारों के बोझ तले
दबी सहमी है |
स्वतंत्रता है अधिकार मेरा
किताबों में पढ़ा है पर
आज तक अनुभव न हुआ
 कर्तव्यों का बोझ लिए
जीवन खडा है |
उदास हूँ
तरस आता है खुद पर 
होता अन्धकार हावी
जाने कब होगा सबेरा |
व्यर्थ की रोकाटोकी
अब रास नहीं आती
अनगिनत वर्जनाएं
व्यथित करती जातीं |
अब कोई बच्ची  नहीं
जो भय मन में पालूँ
कर्तव्य से मुंह मोड़ कर
पलायन करूं  |
चाहती हूँ रखूँ
अस्तित्व अक्षून्य अपना
ना हो बाधित
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
अवाध गति से बढ़ती जाए
विचारों की श्रंखला |
आशा

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति 06-12-2013 चर्चा मंच पर ।।

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  2. चाहती हूँ रखूँ
    अस्तित्व अक्षून्य अपना
    ना हो बाधित
    अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
    अवाध गति से बढ़ती जाए
    विचारों की श्रंखला |
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
    नई पोस्ट वो दूल्हा....
    latest post कालाबाश फल

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  3. बहुत ही सार्थक, सशक्त एवँ सुंदर रचना ! आत्म विश्वास और जागरूक होने की ज़रूरत है ऐसा कोई काम नहीं जो आज की नारी ना कर सके ! बहुत बढ़िया !

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  4. सूचना हेतु धन्यवाद यशवंत जी |
    आशा

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