ऋतुओं के आने जाने से 
दृश्य बदलते रहते 
धरती  के सजने सवरने के 
अंदाज बदलते रहते |
उमढ घुमड़ कर आते 
काली जुल्फों से लहराते बदरा 
प्यार भरे अंदाज में
 सराबोर कर जाते बदरा 
वह हरा लिवास धारण करती 
धानी चूनर लहराती 
खेतों की रानी हो जाती |
वासंती बयार जब चलती
वह फिर अपना चोला बदलती 
पीत वसन पहने झूमती 
नज़र जहां तक जाती 
वह वासंती नज़र आती |
जब सर्द हवा दस्तक देती 
वह धवल दिखाई देती 
प्रातः काल चुहल करती 
रश्मियों के संग खेलती 
उनके रंग में कभी रंगती 
तो  कभी श्वेता नजर आती |
पतझड़ को वह सह न पाती 
अधिक उदास हो जाती 
डाली से बिछुड़े पत्तों सी 
वह पीली भूरी हो जाती 
विरहनी सी राह देखती 
अपने प्रियतम के आने की |
ग्रीष्म ऋतु के आते ही 
तेवर उसके बदल जाते 
वह तपती अंगारे सी 
परिधान ऐसा धारण करती 
कुछ अधिक सुर्ख  हो जाती 
धरती नित्य सजती सवरती 
नए रूप धारण करती |
आशा 



