18 फ़रवरी, 2014

याद नहीं रहते



निशा के आगोश में
स्वप्न सजते हैं
अनदेखे अक्स
पटल पर उभरते हैं
क्या कहते हैं ?
याद नहीं रहते
बस  सरिता जल  से 
कल कल बहते हैं |
यही चित्र मधुर स्वर
मन को बांधे रखते हैं 
प्रातः होते ही
सब कुछ बदल जाता है
हरी दूब और सुनहरी धूप
ओस से नहाए वृक्ष
कलरव करते पंख पखेरू
सब कहीं खो जाते
 रह जाता  ठोस धरातल
कर्तव्यों का बोझ लिए
कदम आतुर चौके में जाने को
दिन के काम दीखने लगते
होते स्वप्न तिरोहित |
आशा

12 टिप्‍पणियां:

  1. कितनी सुन्दर है स्वप्न की दुनिया... बहुत सुन्दर लिखा है आपने

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  2. बहुत ही सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति।

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  3. स्वप्नों का संसार होता ही इतना निराला है ! सुंदर रचना !

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  4. क्षणिक ही सही - एक अतीन्द्रय लोक के दर्शन करा जाते हैं सपने!

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