10 मार्च, 2014

सैलाव विचारों का


भयावह काली रात में
विचारों का सैलाव है
एक अजनवी साया
चारों ओर से घेरे है |

अनसुनी  आवाज
बहुत दूर से आती है
एक कहानी लुका छिपी करती 
फिर लुप्त हो जाती है |

पर जिन्दगी खामोश है
ना कोइ आस ना उमंग
न जाने क्या सोच है 
मन में बहुत आक्रोश है |
यह शाम यहीं तो
 नहीं थम जाएगी   
काली रात के बाद
कभी तो सुबह आएगी |
दूर सड़क पर 
है कुछ गहमागहमी 
पर रात के अँधेरे में
 यहाँ भी सन्नाटा होगा|
|
क्या यही भयावह स्वप्न
मुझ से दूर हो पाएगा
इस तन्हाई   में
सजीव रंग भर पाएगा |

21 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (11-03-2014) को "सैलाव विचारों का" (चर्चा मंच-1548) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आपकी इस प्रस्तुति को आज कि फटफटिया बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  3. बहुत ही सुंदर आदरणीय , कभी न कभी तो ये गम के बादल हटते ही हैं , धन्यवाद ॥ जय श्री हरि: ॥
    प्रतिभागी - श्री राजेश कुमार मिश्रा ( आयुर्वेदाचार्य ) ~ रोग आपका इलाज हमारा ~

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  4. बहुत ही सुन्दर ! बड़ी खूबसूरत अभिव्यक्ति ! बधाई स्वीकार करें !

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  5. जज़बातों से लबालब उमरी हुई आपकी ये बहुत ही लाज़वाब रचना। हार्दिक बधाई ऐसी लेखनी हेतु।

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  6. क्या यही भयावह स्वप्न
    मुझ से दूर हो पाएगा
    इस तन्हाई में
    सजीव रंग भर पाएगा ..........इसी आश में सब जीते है ....सुन्दर

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  7. आशा बनाए रहें , मंगलकामनाएं आपको !!

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  8. इसी आशा को जीवित रखने की जरूरत है आज ... सुन्दर भाव ...

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  9. हर काली रात की भी सुबह तो होती ही है। ओर कुछ रातें भी चांदनी वाली होती हैं। आपका और मेरा तो नाम ही आशा है।

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    1. प्रिय आशा जी अपने नाम भी सामान और शौक भी |आपकी टिप्पणी केलिए धन्यवाद \

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  10. एकाकी मन की बहुत भावपूर्ण और सुन्दर प्रस्तुति....

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