ना कहने को कुछ रहा ,
ना सुनने को बाक़ी
जो देखा है काफ़ी वही ,
उसका सिला देने को |
गुड़ खाया बोला गुड़ सा ,आई नहीं मिठास |
कडुवाहट मन से न गयी व्यर्थ रहे प्रयास ||
वाणी मधुरस से पगी ,अंतस तक छा जाय |
कटु भाषण यदि किया ,धाव गहन हो जाय ||
फूलों की वादियों में एक ठूंठ नजर आया
ना ही कभी फूल खिले ,नाही कभी हरियाया ||
प्यार कभी जाना नहीं ,ना ही कभी मुस्कान
चहरे से यूं ही लगता , कटु भाषण की खान ||
आशा
ना सुनने को बाक़ी
जो देखा है काफ़ी वही ,
उसका सिला देने को |
गुड़ खाया बोला गुड़ सा ,आई नहीं मिठास |
कडुवाहट मन से न गयी व्यर्थ रहे प्रयास ||
वाणी मधुरस से पगी ,अंतस तक छा जाय |
कटु भाषण यदि किया ,धाव गहन हो जाय ||
फूलों की वादियों में एक ठूंठ नजर आया
ना ही कभी फूल खिले ,नाही कभी हरियाया ||
प्यार कभी जाना नहीं ,ना ही कभी मुस्कान
चहरे से यूं ही लगता , कटु भाषण की खान ||
आशा
बहुत ख़ूब!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
हटाएंwah.....dil ke bhawon ki sundar prastuti kavita ke roop men ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी हेतु |
हटाएंसारपूर्ण रचना ! बहुत सुन्दर ! 'सुनहरी धूप' के किये ढेर सारी बधाइयाँ एवं अभिनन्दन !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद पसंद के लिए |
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर बेहतरीन और सामायिक दोहावली
जवाब देंहटाएंएक एक दोहा यथार्थ से परिपूर्ण
एक नज़र हालात-ए-बयाँ: विरह की आग ऐसी है
धन्यवाद अभिषेक जी |
हटाएंबेहतरीन रचना , आदरणीय धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंनया प्रकाशन -: बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ प्राणायाम ही कल्पवृक्ष ~ ) - { Inspiring stories part -3 }
बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर |
हटाएंसूचना हेतु धन्यवाद सर |
जवाब देंहटाएंआशा
फूलों की वादियों में ठूंठ..
जवाब देंहटाएंअच्छा प्रतीक है..।