दबे पाँव पीछे से आना
आँखों पर हाथ रख चौंकाना
सहज भाव से ता कहना
लगते तुम मेरे कान्हां |
(२)
आँखों पर हाथ रख चौंकाना
सहज भाव से ता कहना
लगते तुम मेरे कान्हां |
(२)
ये आंसू सागर के मोती
वेशकीमती यूं ना बिखरें
भूले से यदि अंखियों में आएं
चमक चौगुनी करदें |
(३)
यह गुलाब का फूल
आज हाथों में देखा
कितना कुछ करने को है
यह न देखा |
(४)
ना कहने को कुछ रहा
ना सुनाने को बाकी
जो देखा है वही काफी
उसका सिला देने को |
आशा
आपकी लिखी रचना बुधवार 30 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बहुत सुन्दर..आशा जी
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद |
हटाएंbahut -bahut sundar
जवाब देंहटाएंधन्यवाद उपासना जी
हटाएंबहुत सुन्दर क्षणिकाएं
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
आग्रह है----
और एक दिन
धन्यवाद टिप्पणी हेतु
हटाएंबहुत सुंदर क्षणिकाएं ! बहुत कुछ कहती सी !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना |
हटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद सर |सूचना हेतु आभार |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर आशा जी धन्यवाद !
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बहुत सुन्दर .. निर्मल भाव लिए हैं सब छंद ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद नासवा जी |
हटाएंमन को छूती सुन्दर क्षणिकाएँ आशाजी, आभार
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