02 मई, 2014

चाहत


  
तेरी चाहत 
बनी पैरों की बेड़ी
बढ़ने न दे
कदम बहकते
बाँध कर रखती |

चाँद चाहिए
 था एक जूनून ही
हाथ बढ़ाया
ना मिला रोना आया
झूटा सपना लगा |

हस्त रेखाएं
बताती रह गईं
देख न पाया
है पहुँच से दूर
 मन मान न पाया |

आशा
  1.    

9 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर संक्षिप्त अर्थपूर्ण रचना !

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  2. सुंदर भाव और संदेश लिए दिल से निकली एक रचना !

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  3. आपकी हर चाहत पूरी हो।
    जन्मदिन मुबारक हो आंटी।

    सादर

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  4. जन्म दिन की बधाइयां और शुभकामनाएं।

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  5. जन्मदिन पर मेरी हार्दिक शुभकामनाएं !

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  6. wah bahut sundar...padh kar bahut accha laga....apko janamdin ki dheron shubhkamnayein

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