अपने आप में उलझा हुआ सा
है विस्तार ऐसा आकलन हो कैसे
कोई कैसे उनमें जिए |
रूप रंग आकार प्रकार
बार बार परिवर्तन होता
एक ही इंसान कभी आहत होता
कभी दस पर भारी होता |
सागर के विस्तार की
थाह पाना है कठिन फिर भी
उसे पाने की सम्भावना तो है
पर स्वप्नों का अंत नहीं |
हैं असंख्य तारे फलक पर
गिनने की कोशिश है व्यर्थ
पर प्रयत्न कभी तो होंगे सफल
कल्पना में क्या जाता है |
स्वप्न में बदलाव पल पल होते
यही बदलाव कभी हीरो
तो कभी जीरो बनाते
याद तक नहीं रहते |
बंद आँखों से दीखते
खुलते ही खो जाते
याद कभी रहते
कभी विस्मृत हो जाते |
उस अद्दश्य दुनिया में
असीम भण्डार अनछुआ
बनता जाता रहस्य
विचारक के लिए |
आशा
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (05-05-2014) को "मुजरिम हैं पेट के" (चर्चा मंच-1603) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सूचना हेतु आभार सर |
हटाएंहैं असंख्य तारे फलक पर
जवाब देंहटाएंगिनने की कोशिश है व्यर्थ
पर प्रयत्न कभी तो होंगे सफल
कल्पना में क्या जाता है |
bas aanand hi aata hai .nice poem .
हैं असंख्य तारे फलक पर
जवाब देंहटाएंगिनने की कोशिश है व्यर्थ
पर प्रयत्न कभी तो होंगे सफल
कल्पना में क्या जाता है |
bas aanand hi aata hai .nice poem .
धन्यवाद शालिनी जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंइस रंग विरंगे दुनियाँ में क्यों अलग अलग तगदीर
जवाब देंहटाएंकोई जीता है सपनो में तो कोई करता है तदवीर !New post ऐ जिंदगी !
धन्यवाद कालीपद जी |
हटाएंबहुत बढ़िया रचना ! स्वप्नों का संसार कितना भी अबूझा हो आकर्षित तो करता ही है !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना |
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन में शामिल किया गया है... धन्यवाद....
जवाब देंहटाएंसोमवार बुलेटिन
सूचना हेतु आभार सर |
हटाएंसुंदर सपनों मे खोयी प्यारी सी रचना........
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर |
हटाएंसुंदर !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर |
हटाएंसपनों में हम क्या क्या कर जाते हैं। सपने देखना जरूरी है तबी तो सच होते हैं।
जवाब देंहटाएंश्च कहा है आपने |टिप्पणी हेतु धन्यवाद |
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