04 मई, 2014

स्वप्न जगत


यह संसार स्वप्न जगत का 
अपने आप में उलझा हुआ  सा 
है विस्तार ऐसा आकलन हो कैसे 
कोई  कैसे उनमें जिए |

रूप रंग आकार प्रकार  
बार बार परिवर्तन होता 
एक ही इंसान कभी आहत होता 
कभी दस पर भारी होता |

सागर के विस्तार की
 थाह पाना है कठिन फिर भी 
उसे पाने की सम्भावना तो है 
पर स्वप्नों का अंत नहीं |

हैं असंख्य तारे फलक पर 
गिनने की कोशिश है व्यर्थ 
पर प्रयत्न कभी तो होंगे सफल  
कल्पना में क्या जाता है |

स्वप्न में बदलाव पल पल होते 
यही बदलाव कभी हीरो
 तो कभी जीरो बनाते 
याद तक नहीं रहते |

बंद आँखों से दीखते 
खुलते ही खो जाते 
याद कभी रहते 
कभी विस्मृत हो जाते  |

उस  अद्दश्य दुनिया में 
असीम भण्डार अनछुआ 
बनता जाता रहस्य 
विचारक के लिए |

आशा 

17 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (05-05-2014) को "मुजरिम हैं पेट के" (चर्चा मंच-1603) पर भी होगी!
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. हैं असंख्य तारे फलक पर
    गिनने की कोशिश है व्यर्थ
    पर प्रयत्न कभी तो होंगे सफल
    कल्पना में क्या जाता है |
    bas aanand hi aata hai .nice poem .

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  3. हैं असंख्य तारे फलक पर
    गिनने की कोशिश है व्यर्थ
    पर प्रयत्न कभी तो होंगे सफल
    कल्पना में क्या जाता है |
    bas aanand hi aata hai .nice poem .

    जवाब देंहटाएं
  4. इस रंग विरंगे दुनियाँ में क्यों अलग अलग तगदीर
    कोई जीता है सपनो में तो कोई करता है तदवीर !New post ऐ जिंदगी !

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  5. बहुत बढ़िया रचना ! स्वप्नों का संसार कितना भी अबूझा हो आकर्षित तो करता ही है !

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  6. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन में शामिल किया गया है... धन्यवाद....
    सोमवार बुलेटिन

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  7. सुंदर सपनों मे खोयी प्यारी सी रचना........

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  8. सपनों में हम क्या क्या कर जाते हैं। सपने देखना जरूरी है तबी तो सच होते हैं।

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    1. श्च कहा है आपने |टिप्पणी हेतु धन्यवाद |

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