आज अपनी ८५०वी रचना प्रस्तुत कर रही हूँ |आशा है अच्छी लगेगी |
बेकल उदास बेचैन राही
चला जा रहा अनजान पथ पर
नहीं जानता कहाँ जाएगा
मकसद कहाँ ले जाएगा |
चलते चलते शाम हो गयी
थकान ने अब सर उठाया
सड़क किनारे चादर बिछा कर
रात बिताने का मन बनाया |
अंधेरी रात के साए में
नींद से आँख मिचोनी खेलते
करवटें बदलते बदलते
निशा कहीं विलुप्त हो गई |
समय चक्र बढ़ता गया
सुनहरी धूप लिए साथ
आदित्य का सामना हुआ
सूर्योदय का भास् हुआ |
पाकर अपने समक्ष उसे
अचरज में डूबा डूबा सा
अधखुले नयनों से उसे
देखता
ही रह गया |
खोजने जिसे चला था
खोजने जिसे चला था
जब पाया उसे बाहों में
बेकली कहीं खो गयी
अपूर्व शान्ति चेहरे पर आई
मकसद पूरा हो गया |
आशा
बहुत सुन्दर पोस्ट..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंअच्छा सा समाँ बाँधती सुंदर प्रस्तुति ! बढ़िया रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंसुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएं850वीं पोस्ट की बधायी हो।
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चर्चा मंच पर सही कर दिया है।
धन्यवाद सर
हटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, 850वीं पोस्ट की बधाई हो।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
हटाएंसुंदर । 850 की बधाई भी ।
जवाब देंहटाएंबधाई हेतु धन्यवाद सर |
हटाएं850 वीं रचना बहुत अच्छी लगी आंटी।
जवाब देंहटाएंआपका लेखन ऐसे ही चलता रहे।
सादर
धन्यवाद यशवंत जी |
हटाएंकल 09/05/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
सूचना हेतु धन्यवाद यशवंत जी |
हटाएंसूचना हेतु धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद कौशल जी |
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और लाजवाब
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