07 मई, 2014

मकसद कहाँ ले जाएगा




आज  अपनी ८५०वी रचना प्रस्तुत कर रही हूँ |आशा है अच्छी लगेगी |


बेकल उदास बेचैन राही
चला जा रहा अनजान पथ पर
नहीं जानता कहाँ जाएगा
मकसद  कहाँ ले जाएगा |
चलते चलते शाम हो गयी
थकान ने अब सर उठाया
सड़क किनारे चादर बिछा कर
रात बिताने का मन बनाया |
अंधेरी रात के साए में
नींद से आँख मिचोनी खेलते
करवटें बदलते बदलते
निशा कहीं विलुप्त हो गई  |
समय चक्र बढ़ता गया
सुनहरी धूप लिए साथ
 आदित्य का सामना  हुआ
सूर्योदय का भास् हुआ |
पाकर अपने समक्ष उसे
अचरज में डूबा डूबा सा
अधखुले नयनों से उसे
 देखता ही रह गया |
खोजने जिसे चला था
जब पाया उसे बाहों में
बेकली कहीं खो गयी
अपूर्व शान्ति चेहरे पर आई
मकसद पूरा हो गया |
आशा

18 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा सा समाँ बाँधती सुंदर प्रस्तुति ! बढ़िया रचना !

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  2. सुन्दर रचना।
    850वीं पोस्ट की बधायी हो।
    --
    चर्चा मंच पर सही कर दिया है।

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  3. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, 850वीं पोस्ट की बधाई हो।

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  4. 850 वीं रचना बहुत अच्छी लगी आंटी।
    आपका लेखन ऐसे ही चलता रहे।

    सादर

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  5. कल 09/05/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  6. टिप्पणी हेतु धन्यवाद कौशल जी |

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