मन का मान नहीं होता
जरा सी बात होती है
पर अनुमान नहीं होता ।
हृदय विकल होता है
विद्रोह का कारण बनता है
सहनशक्ति साथ छोड़ती
उग्र रूप दीखता है
विद्रोही मन नहीँ सोचता
जितना भी उत्पात मचेगा
खुद की ही अवमानना होगी
जीना अधिक कठिन होगा ।
पर फिर भी लगता आवश्यक
गुबार जो घुमड़ता मन में
उससे धुंआ ना उठें
वहीं का वहीं दफन हो जाए ।
आशा
जीना अधिक कठिन होगा ।
पर फिर भी लगता आवश्यक
गुबार जो घुमड़ता मन में
उससे धुंआ ना उठें
वहीं का वहीं दफन हो जाए ।
आशा
bahut sundar
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद |
हटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद सर |सूचना के लिए भी धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंमन जब अपनी पे आ जाता है तो उसे रोकना होता है मुश्किल। सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आशा जी
हटाएंमन तो मन है अपनी पर उतर आये तो किसका वश. सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंधन्यवाद टिप्पणी हेतु
हटाएंमन में उमड़ता गुबार निकल जाने को बेचैन विद्रोही होता मन !
जवाब देंहटाएंकभी ठीक भी है !
धन्यवाद बाणी जी
हटाएंबहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : कालबेलियों की दुनियां
टिप्पणी हेतु धन्यवाद सर |
हटाएंकम शब्दों में बहुत कुछ बता दिया ....बहुत खूब
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनु जी |
हटाएंमन की कशमकश को बड़ी सुंदर अभिव्यक्ति दी है ! सशक्त एवं सार्थक प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंपसंद के लिए धन्यवाद |
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