12 अक्टूबर, 2014

बदलते तेवर






बदलते तेवर मौसम के
देते दस्तक दरवाजे पर
अचानक आते परिवर्तन
कई घर जल मग्न|
 संकेत किसी आपदा का
पूर्वाभास गहरी क्षति का
एकाएक अनहोनी घटती
प्रकृति विद्रोह का आगाज़ करती |
चाहे सुनामी या हो  हुद हुद
या हो कहर ग्लेशियर का 
बारिश का या बाढ़ का
सारा अमन चैन हर लेता |
तिनका तिनका जोड़ जोड़ कर 
घर संसार बसाए गए थे 
क्षण भर में हो  ध्वस्त 
जाने कितनो को  विछोह देते |
नयनों का रिसाव न थमता 
फिर भी कोई  हल न निकलता 
क्रूर प्रहार  प्रकृति का 
विषधर सर्प सा होता 
पानी तक पीने न देता |
कितनी भी मदद मिले 
मन पर लगे घाव 
भरने का नाम नहीं लेते 
सदा हरे बने रहते |
आशा


 



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