09 अक्टूबर, 2014

वह बैठा निहारता




वह बैठा निहारता
पुष्पों  भरी क्यारियां 
टहनियां  झुक झुक जातीं
कुसुमों के भार से |
अनायास तेरा आना
रंग बिरंगे फूल चुनना
महावरी पैर बढ़ाना  
झुकना और सम्हलना |
आयल पायल बिछुए कंगना
गुनगुनाना मुस्कुराना
अद्भुद छवि तेरी
मन में उतरती |
मंद  मंद चलती बयार
आनन् का करती सिंगार
चन्द्र मुखी रूपसी
मन स्पन्दित करती |
मृणाल सी कोमल बाहें
 हाथों से फूल चुनती
 कुछ पुष्प  आँचल में आते
कुछ धरा को चूमते |
खुशी उन्हें पाने की 
उनमें ही रम जाने की 
मदिर मुस्कान तेरी
अंतस में सिहरन भरती |
प्रसन्न वदन उन्हें निहारती
भाव संतुष्टि का होता
तब प्यारी सी  छवि तेरी
मन में घर करती |
आशा

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