07 अक्टूबर, 2014

परिचालक





यह शोरशराबा गहमागाहमीं
इंगित जरूर करती
मानो तोड़ रही है मौन
सारे बंधन छोड़  |
आते जाते वाहन
उनका रुकना आगे बढ़ना
तीव्र ध्वनि भोंपू की
है यही जीवन की रवानी |
आवागमन वाहनों का
आते जाते  यात्रियों का
है कितना कठिन
 उसी ने जाना |
फिर भी सचेत मुस्तैद
कहीं भी कमीं नहीं
सदा व्यस्त दिखाई देता
पर क्या सच में ऐसा  होता |
यात्री अपना टिकिट  चाहते
 लाइन में आना नहीं चाहते
बहुत प्यार से समझाता
लाइन के लाभ गिनाता |
जब सीधी उंगली से
 घी न निकलता
रौद्र रूप अपना दिखलाता
टिकिट देना रोक देता |
आये दिन का यही काम
तब भी थकना नहीं जानता
घर से गाड़ी अड्डे तक
स्मित हास्य लिए घूमता |
आशा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Your reply here: