रंग जिन्दगी के
सम्हलने नहीं देते
बवाक हो जाते
प्यार के अफसाने
जब शाम उतर आती
आँगन के कौने में
रहा था धूप से
कभी गहरा नाता
व्यस्तता का आवरण
तब लगता था अच्छा
पर अब सह नहीं पाती
रंगों की चहल कदमी
रहती सदा तलाश
तेरी छत्र छाया की
तभी तो सुरमई शाम
लगती बहुत प्यारी
तन्हाँ आँगन के कोने में
मूंज की खाट पर
बैठ कर बुनना और
गिरते फंदों कोउठा
सलाई पर चढाना
अपनी कृति पर खुश होना
हलकी सी आहट पर
झांक तुम्हारी राह देखना
गिरते फंदों कोउठा
सलाई पर चढाना
अपनी कृति पर खुश होना
हलकी सी आहट पर
झांक तुम्हारी राह देखना
अब आदत सी हो गई है
इस तरह जीने की
समय बिताने की |
आशा
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