निष्ठुर लोग
असहनीय ठण्ड
जगह न दी
रात जाड़े की
इंतज़ार ट्रेन का
कम्पित तन |
दया न माया
कांपता रह गया
दुखित मन |
खुले बदन
ठंडी जमीन पर
सो रहा था |
बर्फीली हवा
वह सह न सका
आगई कज़ा |
ऋतु जाड़े की
महका है चमन
तेरे आने से |
ठंडी बयार
कपकपाता गात
जाड़ा लगता |
आशा
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