सागर में सीपी असंख्य
असंभव सब को एकत्र करना
फिर भी अपेक्षा रहती
मोती वाली सीपी की |
मोती तरह तरह के
छोटे बड़े सुडौल बेडौल
उन्हें तराशती नज़र पारखी
आभा तभी निखरती |
आव मोती की
बनाती अनमोल उसे
और मूल्य बढ़ जाता
जब सजता आकर्षक आभूषण में |
मोती मुकुट के बीच दमकता
शीष हजारों नित झुकते
प्रभु के सजदे में
तब मान मोती भी पाता |
जब सजता प्यार के उपहार में
आव द्विगुणित हो जाती
अनमोल नजर आती
उंगली की अंगूठी में |
आकर्षण मोती का
दिन प्रति दिन बढ़ता
जब मधुर चुम्बन मिलता
जब मधुर चुम्बन मिलता
प्रेम को परिपक्व करता |
तब सागर की या सीपी की
किसी को याद न आती
मोती याद रहता
जननी को कौन याद करता |
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